मानव प्रकृति का बहुत विचित्र प्राणी है. यह इकलौता ऐसा जीव है जो जब भी आवास बनाता है तो बहुत से जीवों के लिए मुसीबत हो जाती है. कई जीवों को अपना आवास बदलना पड़ता है तो कुछ के अस्तित्व तक खतरे में आ जाते हैं. यही ऐसा जीव है जिसके कारण प्राकृतिक और अप्राकृतिक का भेद पैदा हुआ है. आज हालात ये हैं कि इंसान को प्रकृति को बचाने तक के लिए संघर्ष करना पड़ा है. हैरत की बात की नहीं है नहीं है कि दुनिया में मनाए जाने वाले विश्व दिवसों में एक को विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस (World Nature Conservation Day) भी है. हर साल 28 जुलाई को इसे में प्राकृतिक स्रोतों (Natural Resources) के संरक्षण के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए मनाया जाता है.
प्रकृति की विराटता
प्रकृति ने अपने अंदर सभी को समेटा हुआ है. जीवन और उससे जुड़ी हर वस्तु और प्रक्रिया प्रकृति का हिस्सा है. और इस प्रकृति की कोई भी प्रक्रिया किसी भी जीव या दूसरी प्रक्रिया के खिलाफ काम नहीं करती है. यह सब एक बहुत ही शानदार संयोजन की मिसाल है. लेकिन मानवीय रचनात्मकता और विकास के कई कार्य इन प्रक्रियाओं के लिए बाधक ही साबित होते हैं. और ऐसे कार्यों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय बनती जा रही है.
मानव दखल और संकट
आज प्रकृति में मानव दखल इतना गहरा हो गया है कि उसे खुद को बचाने के लिए पृथ्वी को बचाने के उपाय करने पड़ रहे हैं जलवायु परिवर्तन के ऐसे प्रभाव देखने को मिल रहे हैं जिनकी वजह से इंसानों पर कई तरह के संकट आ रहे हैं और इतना ही नहीं उसे इस बात के खतरे साफ तौर पर दिखाई देने लगे हैं कि अगर प्रकृति का संरक्षण नहीं किया गया तो उसका खुद का अस्तित्व ही मिट जाएगा.
प्रकृति के ही खिलाफ
आज मानव की रचनात्मकता कई तरह के संकट पैद कर रही है. हमारे आवास और बस्तियां जंगल खत्म कर रहे हैं जो कई जानवरों का आवास है. हमार उद्योग और वाहन इतना धुंआ उगल रहे हैं कि दुनिया का तापमान बढ़ रहा है जिससे अधिकांश जीवों के लिए जीना मुश्किल होता जा रहा है. कई प्रजातियां तो हमने शिकार के नाम पर ही विलुप्त सी हीकर दी हैं. हमारी गतिविधियों ने ऐसा असर डाला है कि जलवायु और मौसम हमारे साथ अन्य जीवों के लिए मुसीबत बनते जा रहे हैं.
जागरूकता की ज्यादा जरूरत
लेकिन क्या वाकई इंसान प्रकृति का दुश्मन है. क्या इंसान प्रकृति के साथ सामन्जस्य बना कर नहीं रह सकता है. इसका सीधा जवाब है हां. जरूरत स्थिति को समझ कर एक तरह की विशेष जागरूकता पैदा करने की है. यहीं विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस का महत्व आ जाता है. अगर हमें हालात को ठीक से समझें और अपने गतिविधियों को प्रकृति के अनुकूल कर दें तो सारी समस्याएं अपने आप ही सुलझ सकती हैं और अब भी देर नहीं हुई है.
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तो करना क्या है
हमें अपने कार्यों और गतिविधियों को साधना होगा. उन्हें प्रकृति के अनुकूल बनाना होगा. हमारे मकान और बस्तियां ऐसी हों जो दूसरे जानवरों के प्राकृतिक आवास में दखल ना दें. हमारे उद्योग और वाहन प्राकृतिक, जलवायु और मौसम की तंत्रों को बिगाड़ने का काम ना करें. हम जितना हो सके प्रकृति के करीब ही रहें और विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति से दूर जाने का काम ना करें. प्रकृति को समझ कर उसके महत्व के प्रति जागरूक रह कर हमें यह सब आसानी से कर सकेंगे. विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस इसी दिशा में एक अवसर की तरह है.
कोई इतिहास ही नहीं
बहुत अजीब सी बात है कि विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस का कोई इतिहास नहीं है. इतना ही नहीं 28 जुलाई की तारीख के साथ इस दिवस के संबंध की कोई पुख्ता या आधिकारिक जानकारी नहीं है. लेकिन पिछले कुछ सालों से यह दिवस एक जागरूक कार्यक्रम के तौर मनाया जाता है जिसमें प्रकृति संरक्षण के साथ ही विलुप्त हो रही प्रजातियों के संरक्षण के लिए लोगों को जागरूकता का प्रसार किया जाता है.
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बहुत बड़े विषय
दरअसल पर्यावरण और प्रकृति इतने बड़े विषय हैं कि इन्हें नजरअंदाज करने संभव ही नहीं है. इसीलिए जब भी यह दिवस मनना और मनाना शुरू हुआ एक सिलसिला चल निकला. और आज यह दिवस एक जागरूकता कार्यक्रम की तरह मनाया जाता है. लोग एक दूसरे से पर्यावरण और प्रकृति के संरक्षण संबंधी सूत्र वाक्य और विचार साझा करते हैं. प्रकृति के प्रति जागरूकता हमारे लिए बेहतरीन जीवन का एक बहुत ही शानदार खजाना खोल सकती है.
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Tags: Climate Change, Earth, Environment, Research, World
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