आज विनायक चतुर्थी है। मान्यता के अनुसार इस दिन व्रत रखने से भगवान गणेश मनोकामनाएं करते हैं, संकट दूर होते हैं और जीवन में सुख एवं समृद्धि आती है। विनायक चतुर्थी के दिन शाम को पूजा अर्चना के बाद विनायक चतुर्थी की कथा पढ़ने से विशेष फल प्राप्त होता है।
विनायक चतुर्थी व्रत कथा
बहुत समय पहले, नर्मदा नदी के तट पर माता पार्वती और भगवान शिव चौपड़ खेल रहे थे। विजेता का फैसला करने के लिए भगवान शिव ने एक पुतला बनाया और उसे जीवित कर दिया। भगवान शिव ने उस बालक को यह आदेश दिया कि वह विजेता का फैसला करेगा। इसके बाद माता पार्वती और भगवान शिव चौपड़ खेलने में व्यस्त हो गए। माता पार्वती और भगवान शिव के बीच तीन बार चौपड़ का खेल हुआ जिसमें माता पार्वती तीनो बार विजयी हुईं। जब उस बालक से विजेता का नाम पूछा गया तब उसने भगवान शिव का नाम लिया। बालक का यह जवाब सुनकर माता पार्वती को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने उस बालक को लंगड़ा होने तथा कीचड़ में रहने का श्राप दे दिया।
माता पार्वती से क्षमा मांगते हुए उस बालक ने कहा कि उससे यह भूलवश हो गया था। वह बालक माता पार्वती से क्षमा मांगने लगा। श्राप से मुक्त होने के लिए माता पार्वती ने उसे बताया कि यहां नागकन्याएं भगवान श्री गणेश की पूजा करने के लिए आएंगी तब उनके कहे अनुसार तुम्हें गणेश व्रत करना है। व्रत करने से तुम्हें अपने श्राप से मुक्ति मिल जाएगी।
वह बालक करीब एक साल तक इस श्राप से जूझता रहा। एक साल बाद भगवान गणेश की पूजा करने के लिए नागकन्याएं आईं, उस बालक ने उनसे गणेश व्रत की विधि पूछी और 21 दिन लगातार सच्चे मन से भगवान गणेश का व्रत और पूजा करने लगा। बालक की सच्ची श्रद्धा देखकर भगवान गणपति ने उसे दर्शन दिया और उससे वरदान मांगने को कहा। भगवान गणेश को देखकर वह बालक अत्यंत प्रसन्न हुआ और कहा कि उसके पैर स्वस्थ हो जाएं और वह कैलाश में माता पार्वती और भगवान शिव से मिल सके। भगवान गणेश ने उसकी इच्छाओं को पूरी किया।
वह बालक ठीक होने के बाद कैलाश पहुंचा जहां उसे भगवान शिव मिले। भगवान शिव ने भी 21 दिन तक गणेश व्रत किया जिसके बाद माता पार्वती की नाराजगी दूर हो गई। भगवान शिव ने माता पार्वती को गणेश व्रत की विधि और उसकी महिमा के बारे में बताया। कुछ दिन बाद माता पार्वती का मन कार्तिकेय से मिलने का हुआ। अपनी इच्छा पूरी करने के लिए माता पार्वती ने भी 21 दिन तक गणेश व्रत किया और वह सफल हुईं। तबसे विनायक चतुर्थी का व्रत लोग करने लगे।
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