गणगौर पूजन की परंपरा: घर-घर बिंदौरे निकाल कर महिलाएं निभा रहीं गणगौर पूजन की परंपरा – Dainik Bhaskar

शहर टोडारायसिंह सहित ग्रामीण क्षेत्र में इन दिनों भंवर म्हाने पूजण दो गणगौर जैसे गीतों के साथ धुलंडी के दिन से ईसर-गणगौर की पूजा शुरू हो गई। कुंवारी व सुहागिन महिलाएं इसकी पूजा कर रही है। महिलाओं के सोलह श्रृंगार का त्योहार होने से होली के दूसरे दिन से ही ईसर-गणगौर की पूजा शुरू हो गई है। यह पूजा चैत्र शुक्ला तृतीया तक चलेगी।
महिलाएं तथा बालाएं सोलह दिन तक सुबह बाग बगीचे में जाकर हरी दूब चुन कर ला रही है। घरों में मिट्टी के ईसर-गणगौर बना कर उत्साह व जोश के साथ पूजा करती है। शाम को गणगौर पूजन करने वाली महिलाएं ईसर-गणगौर के गीत गाती हुई बिंदौरा निकालती है। इस दौरान गणगौर के गीतों पर नृत्य करती है। कुंवारी कन्याएं इच्छित वर पाने के लिए तथा सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए कामना करती हुई सोलह दिनों तक पूजती है। बालिकाएं बाग में जाकर ईसर-गौर का रूप बनाकर गीत गाती हुई घर आकर पूजा करती है।
ईसर-गणगौर का त्योहार पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है। जिसकी चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से ही नवविवाहिताएं व कुंवारी बालाएं प्रतिदिन गणगौर पूजती है। चैत्र शुक्ला द्वितीया को सरोवर में विर्सजन करती है। तीसरे दिन गणगौर माता की पूजा करती है। मान्यता के अनुसार पार्वती गणगौर व शंकर भगवान की ईसर के रूप में पूजा की जाती है। कहा जाता है कि पार्वती ने शंकर भगवान को वर के रूप में पाने के लिए व्रत तथा तपस्या की थी। जिससे प्रसन्न हो कर भगवान शंकर ने वरदान दिया तथा भगवान शंकर व पार्वती की शादी हुई। इसी कथा के अनुसार कुंवारी कन्याएं योग्य वर तथा सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु की कामना करती है।
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