उत्सव: एक साल में चार बार आती है नवरात्रि, इन दिनों में व्रत करने से मिलता है धर्म और स्वास्थ्य लाभ – Dainik Bhaskar

हिन्दी पंचांग का नवसंवत् 2 अप्रैल से शुरू हो रहा है। इस दिन से चैत्र मास की नवरात्रि शुरू होगी। हिन्दी पंचांग में एक साल में 4 बार नवरात्रियां आती हैं। दो नवरात्रि गुप्त होती हैं और दो सामान्य होती हैं। गुप्त नवरात्रि में साधक महाविद्याओं के लिए खास साधना करते हैं। ये माघ और आषाढ़ मास में आती हैं। दो सामान्य नवरात्रि आश्विन मास और चैत्र मास में आती हैं। इन दो नवरात्रि में सामान्य लोग भी देवी मां के लिए व्रत-उपवास, पूजा-पाठ करते हैं।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार चैत्र नवरात्रि का समय ठंड के खत्म होने का और गर्मी शुरू होने का रहता है। आश्विन मास की नवरात्रि के समय वर्षा ऋतु खत्म होती है और शीत ऋतु शुरू होती है। मौसम परिवर्तन के समय इन नवरात्रि में किए गए व्रत-उपवास से धर्म लाभ के साथ ही स्वास्थ्य लाभ भी मिलते हैं।
आयुर्वेद में रोगों को ठीक करने की एक विद्या लंघन है, जिसमें निराहार रहने की सलाह दी जाती है। नवरात्रि में निराहार रहना होता है यानी इन दिनों में व्रत किए जाते हैं, अन्न का त्याग करते हैं और फलों का सेवन किया जाता है। इस वजह से पाचन तंत्र को आराम मिलता है और पेट संबंधी कई समस्याओं की रोकथाम हो सकती है।
नवरात्रि में व्रत करने का महत्व क्यों हैं?
नवरात्रि में पूरे नौ दिनों तक पूजा-पाठ करने की परंपरा है। काफी लोग पूरी नवरात्रि में मंत्र जाप और ध्यान करते हैं। अगर हम अन्न का सेवन करते हैं तो आलस्य बढ़ता है और पूजा-पाठ में मन नहीं लग पाता है। एकाग्रता नहीं रहती है। इस वजह से नवरात्रि के दिनों में अन्न का त्याग किया जाता है और शरीर को ऊर्जा मिलती रहे, इसके लिए फल और दूध का सेवन सीमित मात्रा में किया जाता है। ऐसा करने से शरीर को जरूरी ऊर्जा मिलती रहती है और भक्त पूरी एकाग्रता के साथ पूजा-पाठ कर पाता है।
चैत्र नवरात्रि से जुड़ी मान्यताएं
चैत्र नवरात्रि में 3 अप्रैल को मत्स्य अवतार जयंती है। ये भगवान विष्णु का पहला अवतार था। जब जल प्रलय आया था, तब विष्णु जी ने मत्स्य अवतार यानी मछली के रूप में अवतार लेकर पूरी सृष्टि को बचाया था। राजा मनु को अपनी शक्ति और सामर्थ्य पर अहंकार हो गया था। उस समय विष्णु जी छोटी सी मछली के रूप में अवतार लिया और राजा मनु का घमंड तोड़ा था।
ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर ही सृष्टि की रचना की थी। इस दिन गुड़ी पड़वा और चेटीचंद भी मनाया जाता है।
चैत्र नवरात्रि में किए गए व्रत उपवास से मौसमी बीमारियों से लड़ने की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। चैत्र नवरात्रि में अन्न का त्याग करना चाहिए और अधिक से अधिक फलों का, दूध का सेवन करना चाहिए। काफी लोग चैत्र नवरात्रि में नीम का सेवन भी करते हैं।
चैत्र नवरात्र के अंत में श्रीराम नवमी मनाई जाती है। त्रेता युग में इसी तिथि पर श्रीराम का अवतार हुआ था।
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