फिल्म इंडस्ट्री में बहुत दिनों से जिस शादी की चर्चा थी, आखिरकार वो संपन्न हुई और आलिया भट्ट व रणबीर कपूर एक-दूजे के हो गए। 14 अप्रैल शुक्रवार को दोनों ने करीबी रिश्तेदारों और मित्रों की मौजूदगी में शादी की रस्में निभाई और जीवन भर के लिए एक हो गए। पर क्या आप जानते हैं इस शादी में रणबीर और आलिया ने सात नहीं मात्र चार ही फेरे लिए। यह बात मीडिया को खुद को आलिया के भाई राहुल भट्ट ने बताई। आखिर क्या थी 4 फेरे लेने की वजह और हिंदू धर्म में 4 फेरे लेने की परंपरा का क्या है महत्व, आइए आपको इस बारे में विस्तार से बताते हैं…
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आलिया के भाई राहुल भट्ट ने बताया कि कपूर खानदान के पुराने पंडित ने यह विवाह संपन्न करवाया और उन्होंने ही आलिया और रणबीर के 7 की बजाए 4 फेरे करवाए। राहुल का कहना है कि इस सेरमनी में भाई की भी अहम भूमिका होती है और हर फेरे के दौरान वह वहीं पर मौजूद रहे। राहुल का कहना है कि विवाह करवाने वाले पंडितजी ने हर फेरे का महत्व बताया। एक फेरा होता है धर्म के लिए, एक फेरा होता है संतान के लिए। इसी तरह से बाकी फेरे भी होते हैं। राहुल का कहना है कि वे इस बारे में पहले नहीं जानते थे, लेकिन इस शादी में उन्होंने काफी कुछ जाना। आइए अब आपको बताते हैं कि हिंदू धर्म में 4 फेरे लेने की परंपरा का क्या है अर्थ…
विवाह में लिए जाने वाले 7 फेरों के संबंध में पारिष्कर गृहसूत्र और यजुर्वेद में उल्लेख मिलता है कि चार फेरे और 7 वचन लिए जाते हैं। बाद में बदलाव होते-होते फेरों की संख्या बढ़ती चली गई। मूल रूप से फेरों के माध्यम के जीवन के चार लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का पाठ पढ़ाया जाता है। हिंदू धर्म को मानने वाले कई राज्यों और कई क्षेत्रों में आज भी 7 फेरों की जगह 4 फेरे ही लेते हैं।
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इन 4 फेरों की धार्मिक आधार पर जो व्याख्या की गई है वो इस प्रकार है कि पहले फेरे का अर्थ है व्यक्ति को सदैव धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए और किसी भी स्थिति में धर्म से समझौता नहीं करना चाहिए। वहीं दूसरे फेरे में आय के बारे में व्याख्या की जाती है कि कैसे दोनों को सीमित आय में खुद को सुखी रखना चाहिए। तीसरे फेरे में काम के भाव से जुड़ा ज्ञान दिया जाता है। वहीं चौथे फेरे में मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग के बारे में बताया जाता है।
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अधिकांश तौर पर सिख समुदाय के लोगों के विवाह में 4 फेरे लेने की परंपरा है। दूल्हा और दुल्हन गुरु ग्रंथ साहिब को बीच में रखकर उसके चारों ओर 4 फेरे लगाते हैं। इसे लवण या फिर लावा या फेरा कहा जाता है। इन 4 फेरों में पहले 3 फेरों में कन्या आगे रहती है तो वहीं आखिरी फेरे में वर आगे रहता है। इनके अलावा राजस्थान के कुछ राजपूत घरानों में 7 के स्थान पर 4 ही फेरे लेने की परंपरा चली आ रही है। देश के कुछ अन्य स्थानों पर भी 4 फेरे लेने की परंपरा है। वैदिक काल में भी विवाह के वक्त 7 के स्थान पर 4 फेरे लिए जाते थे।
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