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ऑस्ट्रेलिया 1st Inn: 0/0 (0.0) CRR: 0.0
पाकिस्तान Yet to bat
टॉसः पाकिस्तान, गेंदबाजी का फैसला
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Uttarakhand CM Pushkar Singh Dhami) ने कहा कि हमारी सरकार उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है. इसी क्रम में हमारी सरकार एक कमेटी का गठन करेगी, जो प्रदेश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लेकर ड्राफ्ट तैयार करेगी. दरसअल, पुष्कर सिंह धामी ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि बीजेपी की सरकार फिर से चुनी जाती है तो वे राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करेंगे. अगर उत्तराखंड (Uttarakhand Government) में कमेटी के ड्राफ्ट के बाद इसे मंजूरी मिल जाती है तो उत्तराखंड में भी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो जाएगा.
इसके लागू होने के बाद प्रदेश में काफी कुछ बदल जाएगा और धर्म आधारित कानून खत्म हो जाएंगे. ऐसे में जानते हैं कि ये यूनिफॉर्म सिविल कोड क्या है और इसके आने से क्या बदलाव आ जाएगा. साथ ही जानते हैं इस पर इतना विरोध क्यों होता है…
यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब अलग-अलग धर्मग्रंथों और रीति-रिवाजों पर आधारित पर्सनल लॉ की जगह देश के प्रत्येक नागरिकों पर लागू होने वाले एक समान नागरिक संहिता में बदलना है. आम भाषा में समझें तो यूनिफॉर्म सिविल कोड का सीधा मतलब है- देश के हर नागरिक के लिए एक समान कानून. फिर भले ही वह किसी भी धर्म या जाति से ताल्लुक क्यों न रखता हो. बता दें कि देश में अलग-अलग मजहबों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं.
यूनिफॉर्म सिविल कोड से ये होगा कि हर धर्म के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा. फिर जैसे विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने और प्रतिपालन या मेंटेंस जैसे मामलों में हर धर्म के रिवाजों के हिसाब से नहीं बल्कि भारत के कानून के हिसाब से फैसला किया जाएगा. इससे सभी मसलों में सभी धर्म के लोगों को एक देश के नागरिक की तरह बिना किसी भेदभाव किए बर्ताव करने की व्यवस्था हो जाएगी. यूनियन सिविल कोड का अर्थ एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है.
भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है और संविधान बनाने के वक्त ही इसका जिक्र कानून में कर दिया गया था. संविधान में यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र आर्टिकल 44 के तहत की गई है. आर्टिकल 44 के अनुसार, ‘राज्य (राष्ट्र) भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को लागू करने का प्रयास करेगा.’ आम भाषा में कहें तो यह देश का एक कर्तव्य है, जिसे राष्ट्र को पूरा करना है. हालांकि, ये प्रावधान शासन व्यवस्था के नीति निर्देशक सिद्धांतों की श्रेणी में आते हैं और मौलिक अधिकार नहीं हैं.
अगर भारत की बात करें तो भारत में अभी हिंदू विवाह कानून, हिंदू उत्तराधिकार कानून, भारतीय क्रिश्चियन विवाह कानून, पारसी विवाह और तलाक कानून जैसे कई लॉ हैं. मुस्लिम पर्सनल लॉ उनके धार्मिक शरिया कानून पर आधारित है, जिसमें एकतरफा तलाक और बहुविवाह जैसी प्रथाएं शामिल हैं. उत्तराखंड से पहले गोवा ही सिर्फ राज्य है, जहां कॉमन फैमिली लॉ है. यहां पर्सनल लॉ बोर्ड के आधार पर नहीं बल्कि एक आम कानून के जरिए मामलों का निपटारा किया जाता है.
जानकार बताते हैं कि हर धर्म में अलग-अलग कानून होने से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है. कॉमन सिविल कोड आ जाने से इस मुश्किल से निजात मिलेगी और अदालतों में सालों से लंबित पड़े मामलों के निपटारे जल्द होंगे. समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का कहना है कि यह सभी धर्मों पर हिंदू कानून को लागू करने जैसा है. इस पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को बड़ी आपत्ति रही है. उनका कहना है कि अगर सबके लिए समान कानून लागू कर दिया गया तो उनके अधिकारों का हनन होगा.
बता दें कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और इजिप्ट जैसे कई देशों में यूनिफॉर्म सिविल कोड पहले से लागू है.
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