हममें से ज्यादातर ने बचपन में नानी–दादी या पेरेंट्स से कहानियां सुनी होंगी। ये कहानियां न सिर्फ हमारा मनोरंजन करती थीं, बल्कि हमें व्यावहारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक ज्ञान भी सिखाती थीं। न्यूक्लियर फैमिली में रहने और घर-ऑफिस के कार्यों में व्यस्त रहने के कारण हम अपने बच्चों को कहानियां नहीं सुना पाते। पर शायद आप नहीं जानतीं कि ये छोटी-छोटी कहानियां बच्चों के मानसिक विकास और सामाजिक संबंध बनाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती (importance of storytelling to child development) हैं।
वर्क-लाइफ बैलेंस के साथ हमें अपने बच्चों को रोज एक कहानी सुनाने का भी वक्त निकालना चाहिए। यदि आप व्यस्त रहती हैं, तो कई साइट्स ऑडियो रूप में बेडटाइम स्टोरीज उपलब्ध कराती हैं। उनकी भी मदद ली जा सकती है। कई रिसर्च इस बात को प्रमाणित करते हैं कि बच्चों को कहानियां सुनाने से न सिर्फ उनकी नॉलेज बढ़ती है, बल्कि उनकी पर्सनैलिटी भी डेवलप होती (Storytelling helps in personality development of children) है।
मम्मी बताती हैं कि लेखक विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र की कहानियों को क्यों लिखा था। वे कहती हैं कि आज से 2 हजार साल पहले राजा अमरशक्ति के तीनों बेटे मूर्ख थे। उन तीनों को प्रैक्टिकल नॉलेज और पॉलिटिक्स की सही जानकारी देने के लिए उस समय के स्कॉलर विष्णु शर्मा ने पशु-पक्षियों पर आधारित कहानियों को माध्यम बनाया था।
ये कहानियां आज भी ‘पंचतंत्र की कहानियां’ के रूप में उपलब्ध हैं। कई अलग-अलग युनिवर्सिटी में हुए रिसर्च भी यही मानते हैं कि यदि बच्चों की पर्सनैलिटी डेवलप करनी है, तो उन्हें रोज कहानियां सुनानी पड़ेंगी।
वर्ष 2010 में यूरोपियन अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन रिसर्च जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च आर्टिकल के अनुसार, स्टोरीटेलिंग बच्चों की लैंग्वेज और शब्द कोश में विस्तार करता है। इसमें 229 बच्चों पर स्टोरीटेलिंग का प्रभाव देखा गया। ये सभी बच्चे 6 वर्ष या उससे अधिक उम्र के थे। यह देखा गया कि जिन बच्चों को मांओं से रोज कहानी सुनने की आदत थी, वे न सिर्फ अपनी बातों को स्पष्ट तरीके से कह पा रहे थे, बल्कि उनकी कई दूसरी एक्टिविटी भी कहानियां न सुनने वाले बच्चों की तुलना में सकारात्मक थी।
फुकुशिमा जर्नल ऑफ मेडिकल साइंस में प्रकाशित रिसर्च आर्टिकल के अनुसार, स्टोरीटेलिंग से बच्चों को कई साइकोलॉजिकल और एजुकेशनल बेनिफिट्स मिलते हैं। इससे बच्चे की इमेजिनेशन बढ़ती है और वे बोले गए शब्दों को विजुअलाइज कर पाते हैं। उनकी शब्दावली बढ़ती है और उनका कम्युनिकेशन स्किल भी डेवलप हो पाता है।
इसकी वजह से बच्चा कहीं भी बोलने-बात करने में लो फील नहीं करता। मुझे याद है कि एक कहानीकार ने मुझे यह बात बताई थी कि उनकी दोनों बेटियां छोटी उम्र में उनसे रोज कहानियां सुना करतीं। वे कहानियों के जरिये अपनी बात बेटियों से कहतीं। विशेषकर अच्छी आदतें सिखाने तथा अपनी सुरक्षा के प्रति सावधान रहना सिखाने में उन्होंने कहानियों की ही मदद ली। साइकोलॉजिस्ट बताते हैं कि जो शिक्षा या संस्कार आप देना चाहती हैं, उसके लिए कहानी सबसे सरल और सही माध्यम हो सकती है।
कुछ साल पहले इंटीरियर डेकोरेटर स्मृति राणा ने कहानियों के माध्यम से अपने बच्चों की कुछ गंदी आदतों पर लगाम लगाई थी। उन्होंने बताया कि वे अच्छे पात्र और बुरे पात्र वाली कहानियां गढ़ लेतीं और रोज रात में बच्चों को सुनातीं। बच्चे अच्छे पात्र की तरह बनना चाहते थे।
उन्होंने कहानियों के माध्यम से ही सामान को व्यवस्थित रूप से रखना, सुबह उठकर ब्रश करना, कंघी करना, घर के कामों में छोटी-मोटी मदद करना, बड़ों से अच्छा व्यवहार करना आदि अच्छी आदतें विकसित कीं।
पबमेड सेंट्रल की स्टडी रिपोर्ट के अनुसार, जब हम इंस्पिरेशनल स्टोरीज सुनते हैं, तो न्यूरोकेमिकल ऑक्सिटोसिन का सीक्रेशन बढ़ जाता है। इससे हमें खुशी की अनुभूति होती है और हम बढ़िया करने के लिए प्रेरित होते हैं।
कहानीकार सिनीवाली शर्मा कहानियां सुनाने के फायदे गिनाते हुए बताती हैं, ‘उन्हें जब भी समय मिलता है, वे बच्चों को कहानियां जरूर सुनाती हैं। एक तो बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बीतता है, तो दूसरी तरफ बच्चे कहानी सुनते हुए दूसरी दुनिया की सैर करने करने लगते हैं।
इससे न सिर्फ उनकी कल्पनाशक्ति बढ़ती है, बल्कि कहानियों के माध्यम से उनमें मानवीय मूल्यों का संचार भी होता है।‘ वह इस बात की चेतावनी देती हैं कि बच्चों को कभी भी भूत–प्रेत या डरावनी कहानियां नहीं सुनानी चाहिए। इससे उनके दिमाग और व्यक्तित्व दोनों पर बुरा असर पड़ता है।
सर गंगाराम हॉस्पिटल में सीनियर कंसल्टेंट साइकोलॉजिस्ट आरती आनंद कहती हैं, “बच्चे यदि तरह–तरह की कहानियां सुनते हैं, तो उन्हें नए–नए शब्दों की जानकारी होती है। साथ ही कहानियां सुनने के दौरान वे कई तरह के प्रश्न भी पूछते रहते हैं। इससे न सिर्फ उनकी नॉलेज बढ़ती है, बल्कि वे चीजों को भी स्पष्ट रूप से समझ पाते हैं। दूसरी तरफ सस्पेंस वाली कहानियां उन्हें दिमागी तौर पर मजबूत बनाती हैं।’
जब भी समय मिले, पंचतंत्र, मुहावरों आदि पर आधारित कहानियां सुनाएं। इससे बच्चे न सिर्फ मोबाइल से दूर रहते हैं, बल्कि उनमें कम शब्दों में अधिक समझने की कला भी विकसित होती है।
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