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राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के भूतपूर्व विचारक और बीजेपी के पूर्व संगठन मंत्री के एन गोविंदाचार्य उस थिंक टैंक का हिस्सा हैं जो देश के संविधान को नए सिरे से लिखने के लिए लोगों से विचार-विमर्श कर रहा है। गोविंदाचार्य यूं तो इस बात से इनकार करते हैं कि उनकी इस सिलसिले में सरकार से कोई बात हुई है, लेकिन वे पूरे जोर-शोर से इस काम को अंजाम देने की तैयारियों में जुटे हैं। हमारे संवाददाता विश्वदीपक ने उनसे लंबी बातचीत की। इसी बातचीत के अंश:
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में कहा कि संविधान में संशोधन की जरूरत है। एक साल पहले आपने कहा था कि संविधान को फिर से लिखे जाने की जरूरत है, क्यों ?
संविधान में संशोधन और पुर्नलेखन दो अलग-अलग बाते हैं। हालांकि दोनों का मकसद एक ही है। हमारा अंतिम लक्ष्य है संविधान को बदलकर इसे भारत के मूल्यों के मुताबिक बनाना। अगर ये शुरुआत संशोधन से होती है तो भी ठीक है। दो लोग एक ही बात को अलग-अलग तरीके से कह सकते हैं।
संविधान से आपका ऐतराज क्या है ?
हमारा संविधान व्यक्तिवाद को प्रोत्साहित करता है और व्यक्तिवाद भारतीय मूल्य व्यवस्था के खिलाफ है। हमारा संविधान व्यक्ति और राज्य के संबंधों को परिभाषित करने वाला दस्तावेज है।
भारत के संविधान में आप क्या बदलना चाहते हैं ?
बहुत सी बातें हैं, जिन्हें बदलना है जैसे ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ का विधान भी हमारे संविधान में आंख मूंदकर अपनाया गया। इसे बदले जाने की जरूरत है। इसकी वजह से जनता वोट बैंक में तब्दील हो गई है और गुणवत्ता प्रभावित हुई है। कॉमन सिविल कोड, धारा-370 को भी बदलने की जरूरत है।
अगर व्यक्तिवाद नहीं तो फिर आपका संविधान किस पर आधारित होगा ?
नया संविधान सामूहिकता के सिद्धांत पर आधारित होगा। राजनीतिक शब्दावली में आप इसे गिल्ड व्यवस्था कह सकते हैं। गिल्ड व्यवस्था में अलग-अलग जातियों, पेशे और समुदायों को, प्रतिनिधिधियों को लिया जाएगा। लोकसभा और राज्यसभा की जगह हम एक राष्ट्रीय गिल्ड बनाएंगे जिसमें कुल मिलाकर 1000 प्रतिनिधि होंगे। 500 प्रतिनिधि क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व (territorial representation) के जरिए आएंगे, जबकि 500 कार्यात्मक प्रतिनिधित्व (functional representation) के रास्ते से शामिल किए जाएंगे। मेरी समझ है कि नेशनल गिल्ड भारत की समस्याओं को ज्यादा बेहतर तरीके से सुलझा पाएगी।
हमारे संविधान में एक व्यक्ति होने के नाते आपको कुछ मूलभूत अधिकार दिए गए हैं। इनका क्या होगा?
हमारे संविधान में अधिकार और कर्तव्य के बीच असंतुलन है। इसे ठीक किए जाने की जरूरत है। आजकल मानवाधिकार शब्द बहुत प्रचलन में है। इसके बारे में सब बात करते हैं, लेकिन कर्तव्यों के बारे में कोई बात नहीं करता। संविधान में मूलभूत कर्तव्यों का भी जिक्र है। अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे के सापेक्ष होते हैं। जैसे अभिव्यक्ति की आजादी राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में देखी जानी चाहिए। किसी को भी असीमित आज़ादी नहीं दी जा सकती।
संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलर (धर्मनिरपेक्षता) शब्द का जिक्र है। क्या आप इसमें भी बदलाव लाएंगे ?
संविधान की प्रस्तावना पूरी तरह से भारतीय मूल्यों के खिलाफ है। सवाल ये है कि भारत के संविधान में धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद जैसे शब्दों को जोड़ने की जरूरत क्या थी?
और समाजवाद…क्या विचार हैं आपके?
हम अभी तक यह निर्धारित ही नहीं कर सके हैं कि समाजवाद है क्या? क्या समाजवाद का मतलब राज्यवाद है या फिर इसका मतलब है संसाधनों का सामाजीकरण। भारत में समाजवाद के जितने भी धड़े हैं, पार्टियां हैं, उनमें से किसी के पास भी स्पष्टता नहीं। किसी को पता नहीं कि संसाधनों का समाजीकरण कैसे करना है। समाजवाद सोवियत संघ में पैदा हुई एक प्रतिक्रियावादी विचारधारा है। इसे भी 42वें संविधान संशोधन के बाद संविधान में जोड़ा गया। समाजवाद की विचारधारा को व्यक्त करने वाला एक बेहतर शब्द भारतीय परंपरा में है – अंत्योदय। अंत्योदय का मतलब है अंतिम आदमी को प्राथमिकता।
संविधान की प्रस्तावना में भारत को लोकतांत्रिक गणराज्य कहा गया है। क्या इससे सहमत हैं आप ?
लोकतंत्र का विचार अहम है न कि शब्दावली। हमने जिस लोकतांत्रिक व्यवस्था को आत्मसात किया है उसमें कई खामियां हैं। सच्चे अर्थों में ये लोकतांत्रिक है भी नहीं। मेरा मानना है कि प्रतिस्पर्धी लोकतंत्र के बजाय सर्व सम्मति और सर्वानुमति का विचार लोकतंत्र का आधार होना चाहिए। सत्ता में भागीदारी का तरीका भी बदला जाना चाहिए। 49-51 वाला सिद्धांत ठीक नहीं है। अगर किसी को 51 प्रतिशत मत मिले तो वो सत्ता में रहेगा और जिसे 49 फीसदी मत मिले, उसका क्या ? 49 फीसदी मतों का समाधान कहां हुआ फिर ?
क्या आपने नए संविधान का कोई ड्राफ्ट भी तैयार किया है। इस बारे में सरकार से कोई चर्चा हुई है ?
इस बारे में कई स्तरों पर शांति पूर्वक विचार विमर्श चल रहा है। हम लोगों के विचार आमंत्रित कर रहे हैं। आपसे मैंने ऊपर जो बातें की हैं, वो इसी सोच विचार के बाद सामने आई हैं। कई शोध संस्थान, छात्र संगठन और विचारवान लोग इस प्रक्रिया में शामिल हैं। अगले साल यानी 2018 के अंत तक हो कि आपसे बात करने के लिए हमारे पास कुछ ठोस सामग्री मौजूद हो।
आजकल समानांतर चुनाव यानी पूरे देश के सभी चुनाव (लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव) के बारे में बहुत बातें चल रही हैं। आपका क्या मानना है – ये देश कि लिए अच्छा है ?
सिद्धांत के तौर पर मैं इससे सहमत हूं, लेकिन मुझे इसके सफलता पूर्वक लागू किए जाने पर शक है। देश की सभी विधानसभों को एक साथ कैसे भंग किया जाएगा। कैसे एक साथ हर जगह चुनाव कराए जाएंगे? नो-कॉन्फिडेंस मोशन का क्या होगा? बहुत से सवाल हैं, जिनके जवाब दिए।
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