कल से 10 दिवसीय गणेशोत्सव में भजन-कीर्तन से वातावरण होगा भक्तिमय
कपूरथला(राजेश सेठी/हरप्रीत सिंह पूर्वा)गणेश उत्सव 31 अगस्त से शुरू हो रहा है।जिले में हर वर्ष की तरह इस बार भी उत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाएगा।हर बार विश्व हिन्दू परिषद् व बजरंग दल हनुमंत अखाडा में विशाल समागम आयोजित किया जाता है,जिसमें भगवान गणेश की विशाल प्रतिमा को स्थापित करके रोजाना सत्संग आयोजित किया जाता है।यहां पर पुरे शहर से श्रद्धालु आते हैं और इसके बाद गणपति जी की प्रतिमा को विदाई दी जाती है।शहर में हनुमंत अखाडा में आयोजित होने वाले समागम के लिए विश्व हिन्दू परिषद व बजरंग दल के कार्यकर्ताओ ने इस बार भी गणेश उत्सव की तैयारियां पूरी कर ली हैं।बजरंग दल के जिला प्रधान जीवन प्रकाश वालिया,ज़िला उपप्रधान आनद यादव व अखाडा प्रमुख बजरंगी ने बताया कि 31 अगस्त से गणेशोत्सव आरंभ होकर 9 सितंबर तक चलेगा।प्रथम दिन 31 अगस्त दिन बुधवार को सुबह आठ बजे ढोल-ढमाकों और बैंड-बाजों के साथ शहर के जालंधर बाईपास से शोभायात्रा निकालकर हनुमंत अखाडा में विधि-विधान से पूजन कर गणपति महाराज की मनमोहक प्रतिमा की स्थापना की जाएगी।वालिया ने बताया इस दौरान रोजाना शाम 7.30 बजे शहर की सामाजिक,धार्मिक,मंदिर कमेटिओ,व्यापारिक संस्थाओ,राजनितिक पार्टिओ के नेताओं द्वारा भगवान गणेश जी की आरती की जाएगी। अंतिम दिन 9 सितंबर सुबह 11 बजे विशाल शोभा यात्रा के रूप में गोइंदवाल साहिब में प्रतिमा विसर्जन होगा।वालिया ने कहा कि देश की आजादी के आन्दोलन में गणेश उत्सव ने बहुत महत्वपूण भूमिका निभायी थी।1894 मे अंग्रेजो ने भारत मे एक कानून बना दिया था जिसे धारा 144 कहते हैं जो आजादी के इतने वर्षों बाद आज भी लागू है।इस कानून मे किसी भी स्थान पर 5 से अधिक व्यक्ति इकट्ठे नहीं हो सकते थे।और ना ही समूह बनाकर कहीं प्रदर्शन कर सकते थे।महान क्रांतिकारी बंकिम चंद्र चटर्जी ने 1882 मे वन्देमातरम नामक एक गीत लिखा था जिस पर भी अंग्रेजों प्रतिबंध लगा कर गीत गाने वालों को जेल मे डालने का फरमान जारी कर दिया था।इन दोनों बातों से लोगो मे अंग्रेजो के प्रति बहुत नाराजगी व्याप्त हो गयी थी।लोगो मे अंग्रेजो के प्रति भय को खत्म करने और इस कानून का विरोध करने के लिए महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक ने गणपति उत्सव की स्थापना की और सबसे पहले पुणे के शनिवारवाड़ा मे गणपति उत्सव का आयोजन किया गया।उन्होंने कहा कि 1894 से पहले लोग अपने अपने घरो मे गणपति उत्सव मनाते थे।लेकिन 1894 के बाद इसे सामूहिक तौर पर मनाने लगे।पुणे के शनिवारवडा के गणपति उत्सव मे हजारो लोगो की भीड़ उमड़ी।लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजो को चेतावनी दी कि हम गणपति उत्सव मनाएगे अंग्रेज पुलिस उन्हे गिरफ्तार करके दिखाये।कानून के मुताबिक अंग्रेज पुलिस किसी राजनीतिक कार्यक्रम मे एकत्रित भीड़ को ही गिरफ्तार कर सकती थी।लेकिन किसी धार्मिक समारोह मे उमड़ी भीड़ को नहीं।20 अक्तूबर 1894 से 30 अक्तूबर 1894 तक पहली बार 10 दिनो तक पुणे के शनिवारवाड़ा मे गणपति उत्सव मनाया गया।लोक मान्य तिलक वहां भाषण के लिए हर दिन किसी बड़े नेता को आमंत्रित करते।1895 मे पुणे के शनिवारवाड़ा मे 11 गणपति स्थापित किए गए।उसके अगले साल 31 और अगले साल ये संख्या 100 को पार कर गई। फिर धीरे-धीरे महाराष्ट्र के अन्य बड़े शहरो अहमदनगर,मुंबई,नागपुर,थाणे तक गणपति उत्सव फैलता गया। गणपति उत्सव में हर वर्ष हजारो लोग एकत्रित होते और बड़े नेता उसको राष्ट्रीयता का रंग देने का कार्य करते थे।इस तरह लोगो का गणपति उत्सव के प्रति उत्साह बढ़ता गया और राष्ट्र के प्रति चेतना बढ़ती गई।वालिया ने कहा कि गणेशोत्सव एक महान उत्सव है और सम्पूर्ण भारत में अनेक प्रकार से मनाया जाता है।
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