जानें, बाबा की नगरी काशी के विश्वनाथ मंदिर की पौराणिक कथा – दैनिक जागरण (Dainik Jagran)

धार्मिक किदवंती के अनुसार एक बार देवताओं ने भगवान ब्रह्मा देव और विष्णु जी से पूछा कि- हे जगत के रचयिता और पालनहार कृपा कर बताएं कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन है? देवताओं के इस सवाल से ब्रह्मा और विष्णु जी में श्रेष्ठता साबित करने की होड़ लग गई।

दैविक काल से बनारस देव भूमि के नाम से जाना जाता है। यह शहर पवित्र गंगा नदी के किनारे बसा है। गंगा के किनारे कुल 88 घाट हैं . बनारस अपनी धार्मिक महत्व के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। हर साल दुनियाभर से पर्यटक बनारस घूमने आते हैं। लोग गंगा आरती में शामिल होकर ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर में जाकर बाबा के दरेशन करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि दैविक काल में महादेव काशी में ही रहते थे। आइए, काशी विश्वनाथ मंदिर की पौराणिक कथा जानते हैं-

धार्मिक किदवंती के अनुसार, एक बार देवताओं ने भगवान ब्रह्मा देव और विष्णु जी से पूछा कि- हे जगत के रचयिता और पालनहार कृपा कर बताएं कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन है? देवताओं के इस सवाल से ब्रह्मा और विष्णु जी में श्रेष्ठता साबित करने की होड़ लग गई। इसके बाद सभी देवतागण, ब्रह्मा और विष्णु जी सहित कैलाश पहुंचे और भगवान भोलेनाथ से पूछा गया कि- हे देवों के देव महादेव आप ही बताएं कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन हैं?

शिव जी के शरीर से ज्योति कुञ्ज निकली
देवताओं के इस सवाल पर तत्क्षण भगवान शिव जी के तेजोमय और कांतिमय शरीर से ज्योति कुञ्ज निकली, जो नभ और पाताल की दिशा में बढ़ रही थी। तब महादेव ने ब्रह्मा और विष्णु जी से कहा- आप दोनों में जो सबसे पहले इस ज्योति की अंतिम छोर पर पहुंचेंगे। वहीं, सबसे श्रेष्ठ है। इसके बाद ब्रह्मा और विष्णु जी अनंत ज्योति की छोर तक पहुंचने के लिए निकल पड़े। कुछ समय बाद ब्रम्हा और विष्णु जी लौट आए तो शिव जी ने उनसे पूछा-हे देव क्या आपको अंतिम छोर प्राप्त हुआ।

ब्रम्हा जी झूठ बोल गए
इस पर विष्णु जी ने कहा-हे महादेव यह ज्योति अनंत है, इसका कोई अंत नहीं है। जबकि ब्रम्हा जी झूठ बोल गए, उन्होंने कहा- मैं इसके अंतिम छोर तक पहुंच गया था। यह जान शिव जी ने विष्णु जी को श्रेष्ठ घोषित कर दिया। इससे ब्रह्मा जी क्रोधित हो उठें, और शिव जी के प्रति अपमान जनक शब्दों का प्रयोग करने लगे।

काल भैरव देव के जयकारे लगने लगे
यह सुन भगवान शिव क्रोधित हो उठें और उनके क्रोध से काल भैरव की उत्पत्ति हुई, जिन्होंने ब्रम्हा जी के चौथे मुख को धड़ से अलग कर दिया। उस समय ब्रह्मा जी को अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने तत्क्षण भगवान शिव जी से क्षमा याचना की। इसके बाद कैलाश पर्वत पर काल भैरव देव के जयकारे लगने लगे। यह ज्योति द्वादश ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ कहलाया।

डिसक्लेमर
‘इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।’

Edited By Umanath Singh
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