हिंदू धर्म के नाग-नागिनों के प्‍यार और नफरत की 7 रोचक कहानियां – Navbharat Times

हिंदू धर्म के पुराणों में कुछ नाग-नागिनों का उल्लेख मिलता है। नाग भारतवर्ष में वैसे भी धार्मिक दृष्टि से काफी महत्व रखते हैं। महाभारत से लेकर कई पौराणिक कथााओं में इनकी कहानियां पढ़ी जा सकती हैं। शेषनाग, वासुकी, तक्षक, कालिया, मनसा देवी, कौरव्य नाग और उलूपी ये कुछ प्रसिद्ध नाग-नागिन हैं, जिनके बारे में सुनने को मिलता है। धार्मिक दृष्टि से इनका अलग अलग महत्व है आज हम आपको हिंदू धर्म के इन सात प्रसिद्ध नाग-नागिन की प्यार और नफरत की कहानियों के बारे में विस्तार से बताएंगे।

आपने कई पौराणिक कथाओं में इनका नाम सुना होगा। धार्मिक मान्यता है कि शेषनाग सब नागों में श्रेष्ठ हैं, यह भी कहा जाता है कि इन्हीं के फन पर समस्त संसार टिका हुआ है। शेषनाग का निवास पाताललोक बताया गया है। हमने पुराने चित्रों में भी देखा है कि भगवान नारायण इनके ऊपर ही विश्राम करते हैं। पुराणों के अनुसार, नागराज संसार से विरक्त हो गए थे। कहा जाता है कि पारिवारिक द्वेष के कारण संसार का मोह त्यागना चाहते थे। उनकी मां, भाई और उनकी सौतेली माना विनता और गरुड़ थे जिनमें आपसी वैरभाव था। इसलिए माता और भाइयों को त्यागकर गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने चले गए थे। मान्यातानुसार भगवान ब्रह्मा ने इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान दिया  और पाताल का राजा बनाया। शेषनाग भगवान नारायण के सेवक हैं। मान्यता के अनुसार, शेषनाग के हजार सिर हैं हैं, इनका कही अंत नहीं है इसीलिए इन्हें ‘अनंत’ भी कहा गया है। ये कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू के बेटों में सबसे पराक्रमी और विष्णु भक्त हैं। पुराणों में लक्ष्मण और बलरामजी इनके अवतार बताए गए हैं।
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वासुकी शेषनाग के छोटे भाई थे। शेषनाग के पाताललोक के नीचे जाते ही अर्थात जललोक में जाते ही उनके स्थान पर उनके छोटे भाई, वासुकी का राजतिलक करके उनको राजपाट सौंप दिया गया था। भगवान शिव का परम भक्त होने के कारण वासुकी उनके शरीर पर निवास करते थे। शेषनाग के बाद नागों के दूसरे राजा वासुकी ही थे। वासुकी के बारे में धार्मिक मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और राक्षसों ने मंदराचल पर्वत की मथनी और वासुकी नाग को ही रस्सी के तौर पर प्रयोग किया था। वासुकी को देवताओं ने नागधन्वातीर्थ में नागराज के पद पर बैठाया था। वासुकी नाग बहुत ही भीमकाय और लंबे स्वरूप के थे। त्रिपुरदाह के समय भी भगवान शंकर ने उन्हें अपने धनुष की डोर बनाया था। वासुकी ने नागवंश के अस्तित्व की रक्षा के लिए अपनी बहन का विवाह जरत्कारु से कर दिया। मान्यता है कि जरत्कारु के पुत्र आस्तीक ने जनमेजय के नागयज्ञ के समय सर्पों की रक्षा की थी, नहीं तो नागवंश पूर्ण रूप से समाप्त हो जाता।

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, तक्षक पाताल में रहने वाले आठ नागों में से एक नाग है। तक्षक का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। श्रृंगी ऋषि के शाप के चलते तक्षक ने राजा परीक्षित को एक युद्ध के दौरान डंसा था जिससे उनकी मृत्यु हो गई थी। कहा जाता है इसका बदला लेने के लिए परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था। इस यज्ञकुंड में अनेक सर्प आकर गिरने लगे, इस तरह नागवंश खतरे में आ गया। ऐसा होता देखकर तक्षक जान बचाने के लिए देवराज इंद्र की शरण में पहुंचा, जैसे ही तक्षक का नाम लेकर यज्ञ की आहुति डाली गई और वह यज्ञकुंड में गिरने लगा। तभी आस्तीक ऋषि ने अपने मंत्रोंच्चारण से तक्षक को आकाश में ही रोक दिया और आस्तीक मुनि के आग्रह पर जनमजेय ने सर्पयज्ञ पर भी विराम लगा दिया। इस तरह तक्षक के प्राणों की रक्षा हुई।

कालिया नाग के बारे में गीता में भी उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि कालिया नाग यमुना नदी में अपनी पत्नियों के साथ निवास करता था। इसका विष इतना जहरीला था कि समस्त यमुना नदी का जल भी विषाक्त हो गया था। भगवान श्रीकृष्ण अपनी लीला के चलते यमुना नदी में कूद गए। यहां कालिया नाग और उनके बीच भयानक युद्ध हुआ। उसकी पत्नियों ने अपने स्वामी की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण से उसके प्राण बचाने के लिए प्रार्थना की तब श्रीकृष्ण ने कालिया से परिवार समेत कहीं और निवास करने का वचन लिया। श्रीकृष्ण के कहने पर कालिया नाग परिवार सहित यमुना नदी छोड़कर कहीं और अपना निवास स्थान बना लिया।
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मनसा देवी का मंदिर हरिद्वार में हरकी पैड़ी के पास गंगा किनारे पहाड़ी पर स्थित है। यह शिव की मानस पुत्री मानी जाती हैं। मनसा देवी का उल्लेख पुराणों में है। मान्यता यह भी है कि मनसा देवी का जन्म ऋषि कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है। इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में पूजा जाता है, यह एक विषकन्या थीं। कुछ ग्रंथों में लिखा है कि वासुकी नाग द्वारा बहन पाने की इच्छापूर्ति के लिए शिव नें उन्हें इसी मनसा नामक कन्या को भेंट स्वरूप दिया था। मनसा देवी के जन्म के लिए यह भी कहा जाता है कि वासुकी नाग की माता ने एक कन्या की प्रतिमा का निर्माण किया जो शिव के वीर्य से स्पर्श होने पर नागकन्या बनी, यही मनसा कहलाईं। यह शिव और कृष्ण की भक्त थीं।माता मनसा की पूजा के फल स्वरूप ही राजा युधिष्ठिर महाभारत के युद्ध में विजयी हुए थे।

कौरव्य का उल्लेख महाभारत में मिलता है। उल्लेख है कि यह एक नाग था। परिस्थितिवश यह अर्जुन के ससुर बन गए थे। जब पांडवों ने खाण्डवप्रस्थ पर अधिकार कर लिया तो यह अपने परिवार के साथ पाताल में चले गए और अर्जुन से बदला लेने के लिए अपनी पुत्री उलूपी को भेजा लेकिन स्थिति कुछ ऐसी हो गई कि अर्जुन इनके दामाद बन गए।

उलूपी का उल्लेख महाभारत में मिलता है। यह एक नागकन्या थी। नागवंश के राजा कौरव्य की पुत्री थी। एकबार अर्जुन ने द्रौपदी को युधिष्ठिर के साथ एकांतवास में भूलवश देख लिया था। नियमानुसार इस गलती के लिए उन्हें एक साल के लिए वनवास के लिए जाना पड़ा था। इस दौरान अर्जुन गंगा किनारे भटकते हुए पहुंचे थे। नागवंश से इंद्रप्रस्थ को मुक्त कराने के लिए अर्जुन नागों से युद्ध भी कर रहे थे इससे बड़ी संख्या में नाग मारे गए थे। तब नागकन्या उलूपी अर्जुन से बदला लेने के लिए आई थी। वह सम्मोहन कला में पारंगत थी, लेकिन अर्जुन के रूप को देखकर स्वयं ही मोहित हो गई और अर्जुन को मूर्छित करके नागलोक ले गई। इस तरह दोनों का विवाह हुआ दोनों कई वर्षों तक नागलोक में साथ रहे। दोनों के एक संतान भी हुई जिसका नाम इरावन था।
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