पौराणिक मान्यताओं अनुसार एक बार शिव ने अपनी तीसरी आंख से उत्पन्न हुआ तेज समुद्र में फेंक दिया जिससे जलंधर उत्पन्न हुआ। जलंधर बहुत ही शक्तिशाली असुर था। ये इंद्र को पराजित कर तीनों लोकों का स्वामी बन गया था। माना जाता है कि जलंधर की अपार शक्ति का कारण उसकी पत्नी वृंदा थी। वृंदा के पतिव्रता धर्म के कारण कोई भी उसका वध नहीं कर सकता था। इसलिए जलंधर को अपने शक्तिशाली होने पर घमंड हो गया था।
जलंधर ने तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य जमाने के बाद विष्णु लोक पर आक्रमण करने की सोची और देवी लक्ष्मी को विष्णु जी से छीन लेने की योजना बनाई। लेकिन इस पर देवी लक्ष्मी ने जलंधर से कहा कि हम दोनों ही जल से उत्पन्न हुए हैं जिस कारण हम भाई-बहन हुए। देवी लक्ष्मी की बात मानकर जलंधर विष्णु लोक से चला गया।
इसके बाद जलंधर ने कैलाश पर आक्रमण करना चाहा। तब महादेव को जलंधर से युद्ध करना पड़ा। लेकिन वृंदा के पतिव्रता होने के कारण भगवान शिव उसका वध नहीं कर पा रहे थे। यह देखकर भगवान विष्णु ने वृंदा के पतिव्रत धर्म को तोड़ने की योजना बनाई। विष्णु जी जलंधर का वेष धारण करके वृंदा के पास पहुंच गए। वृंदा को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं लगा कि ये उनके पति नहीं हैं। इससे वृंदा का पतिव्रत धर्म टूट गया और शिव ने जलंधर का वध कर दिया।
सतीत्व भंग होने पर वृंदा ने आत्मदाह कर लिया। मान्यता है वृंदा की राख के ऊपर तुलसी के पौधे का जन्म हुआ। (यह भी पढ़ें- नाग पंचमी के दिन काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए बताए जाते हैं ये ज्योतिषीय उपाय)
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