धर्म ज्ञान: जीवन का सार समेटे हुए हैं हिंदू धर्म की ये 6 मान्यताएं, क्या जानते हैं आप? – Navbharat Times

हिंदू धर्म, सनातन धर्म का ही एक प्रचलित नाम है। सनातन का अर्थ होता है, जो पृथ्वी या ब्रह्मांड के अस्तित्व के समय से ही अस्तित्व में हो। वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित जीवन पद्धति को सनातन धर्म के नाम से जाना जाता था। यह धर्म जीवन जीने के तरीकों का ही संकलन है, जिसमें मानवीय मूल्यों को विशेष महत्व दिया गया है। आइए, आज खुद का ही टेस्ट लेते हैं और जानते हैं कि हमें भारत के इस धर्म के बारे में कितना पता है….

हिंदू धर्म में सच या सत्य वचन को शाश्वत माना गया है। तभी कहा भी जाता है कि सौ झूठ बोलने से भी सच नहीं मिटता। सच उसी तरह चमकता रहता है, जिस तरह सूरज की रोशनी। जो बादलों के कारण कुछ समय के लिए छिप जरूर जाती है लेकिन फिर उसी दिव्यता के साथ संपूर्ण जगत में छा जाती है।
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ब्रह्म अर्थात ब्रह्मा इस ब्रह्मांड का सबसे बड़ा सच हैं। वैदिक धर्म-ग्रंथों के अनुसार, इस संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना ब्रह्मदेव ने की है और संसार में जितने भी जीव हैं, उन सभी में ब्रह्मा का अंश है।

वेदों का लेखन स्वयं ईश्वर द्वारा किया गया है। ऋषि वेदव्यास ने वाचन किया और स्वयं भगवान गणपति ने वेदों का लेखन किया। पौराणिक कथा के अनुसार वेदव्यासजी को संपूर्ण ब्रह्मांड में गणपति से उचित लेखन नहीं मिले। इसलिए उन्होंने गणेशजी से प्रार्थना की कि भगवन आपको ही लेखन कार्य करना होगा क्योंकि आपसे शीघ्र गति से यह कार्य कोई और नहीं कर सकता। तब ऋषि वेदव्यास और भगवान गणपति के मध्य यह निश्चित हुआ कि अगर कहीं वेदव्यास जी अटके तो भगवान वहीं लिखना बंद कर देंगे। लेकिन वेदव्यास का ज्ञान अतुलनीय था और उन्होंने बोलना जारी रखा तो गणपति लिखते रहे। ऐसे में वेदों में कही गई बातें स्वयं ईश्वर का आदेश मानी जाती हैं। हां, यह बात ध्यान देने योग्य है कि वैदिक काल से आज तक वेदों में मानव ने अपने हिसाब से क्या जोड़ा और क्या हटाया इस बात पर हमें विचार कर ही अनुसरण करना चाहिए।

हिंदू धर्म में धर्म को जीवन जीने की कला के रूप में अपनाया गया है। सत्य के मार्ग पर चलना, दूसरों को कष्ट न देना, जीवों पर दया करना, जैसे विचारों को जीवन में उतारना सिखाया जाता है। ऐसे कार्यों को निंदनीय माना जाता है, जिनसे धर्म की हानि होती हो या समाज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हो।

सनातन धर्म में आत्मा को अमर माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी गीता के उपदेश में यही कहा है कि आत्मा अमर है और अग्नि, जल, वायु इत्यादि का इस पर कोई प्रभाव नहीं होता है। जिस प्रकार मनुष्य पुराने कपड़ों का त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है, इसी प्रकार आत्मा भी पुराने पड़ चुके शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण करती है।

अजर और अमर होने के साथ ही मानव या अन्य जीव के शरीर में जन्म लेने के बाद हर आत्मा का उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति होता है। इसीलिए कहा जाता है कि अपने कर्म सही रखें, धर्म का पालन करें ताकि आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो सके और वह परब्रह्म में लीन हो सके।
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