जानें भगवान गणेश के प्रतीक चिन्हों का पौराणिक रहस्य – News18 हिंदी

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Lord Ganesha Ke Prateek Chinha: हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को किसी भी शुभ कार्य से पहले पूजा (Puja) जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश को सबसे पहले पूजने पर हर शुभ कार्य बिना बाधा के सफल (Success) होता है. रिद्धी-सिद्धी के दाता भगवान गणेश (Lord Ganesha) अपने भक्तों पर बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं. विघ्नहर्ता कहे जाने वाले भगवान गणेश को लेकर शास्त्रों में कई सारी कथाएं प्रचलित हैं. कैसे भगवान गणेश को गज मुख प्राप्त हुआ, कैसे भगवान गणेश का एक दांत टूटा, क्यों भगवान गणेश मूषक की सवारी करते हैं, भगवान गणेश पर तुलसी क्यों नहीं चढ़ाई जाती, यहां तक की भगवान गणेश को भोग में मोदक अत्यंत प्रिय क्यों हैं. आज हम जानेंगे भगवान गणेश के प्रतीक चिन्हों के पौराणिक रहस्य के बारे में.
भगवान गणेश सबसे पहले क्यों पूजे जाते हैं
भगवान गणेश को सबसे पहले पूजे जाने को लेकर कई कथाएं हैं जिसमें से एक कथा के अनुसार जब भगवान शिव ने भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग किया था तो माता पार्वती बेहद क्रोधित हो गईं थीं और उनका सिर लगाने के बाद भी जब नहीं मानी तो भगवान शिव ने माता पार्वती को वचन दिया था कि उनका पुत्र गणेश कुरूप नहीं कहलाएगा. बल्कि सभी देवी देवताओं में सबसे पहले पूजा जाएगा. तभी से यह परम्परा चली आ रही है.
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ओ३म् (ॐ) में गणेश का वास
ओ३म् (ॐ) में गणेश शिवमानस पूजा में श्री गणेश को ओ३म् (ॐ) या ओंकार का नामांतर प्रणव कहा गया है. इस एक अक्षर ॐ में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे वाला भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूंड मानी जाती है.
मूषक की सवारी क्यों करते हैं भगवान गणेश
एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में सुमेरू अथवा महामेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि का बेहद मनोरम मनोरम आश्रम हुआ करता था. ऋषि अपनी बेहद रूपवती और पतिव्रता पत्नी मनोमयी के साथ वहां रहते थे. एक दिन की बात है सौभरि ऋषि लकड़ी लेने वन गए उस समय मनोमयी गृह-कार्य में व्यस्त थीं. तभी वहां एक दुष्ट कौंच नामक गंधर्व आया वो मनोमयी को देख अपना आपा खो और बैठा ऋषि-पत्नी का हाथ पकड़ लिया. रोती-कांपती मनोमयी उसके आगे गिड़गिड़ाने लगी और दया की भीख मांगने लगी. तभी ऋषि सौभरि वहां आ गए. इस दृश्य को देख क्रोधित सौभरि ऋिषि ने कौंच को श्राप देते हुए कहा ‘तूने चोर की भांति मेरी पत्नी का हाथ पकड़ा है, इस कारण तू मूषक होकर धरती के नीचे और चोरी करके ही अपना पेट भरेगा. डर से कांपता गंधर्व मुनि से प्रार्थना करने लगा और बोला ’दयालु मुनि, अविवेक के कारण मैंने आपकी पत्नी के हाथ का स्पर्श किया था, मुझे क्षमा कर दें’. ऋषि ने कहा मेरा श्राप व्यर्थ नहीं होगा, तथापि द्वापर में महर्षि पराशर के यहां गणपति देव गजमुख पुत्र रूप में प्रकट होंगे तब तू उनका वाहन बन जाएगा, जिससे देवगण भी तुम्हारा सम्मान करेंगें.
मोदक का भोग
मोदक का अर्थ- मोद’ यानी आनंद व ‘क’ का अर्थ है छोटा-सा भाग. अतः मोदक यानी आनंद का छोटा-सा भाग. भगवान गणेश को सबसे प्रिय मोदक है. मोदक का भोग भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए लगाया जाता है. भगवान गणेश के हाथ में रखे मोदक का अर्थ है कि उस हाथ में आनंद प्रदान करने की शक्ति है.
मोदक ज्ञान का प्रतीक भी है
इतना ही नहीं मोदक को ज्ञान का प्रतीक भी माना गया है. जिस तरह धीरे-धीरे और थोड़ा-थोड़ा मोदक खाने से उसकी मिठास बढ़ती जाती है और अंत में उसे खाने के बाद आनंद की प्राप्ति होती है. ठीक उसी तरह ज्ञान मोदक को लेकर शुरू में लगता है कि ज्ञान थोड़ा सा ही है लेकिन बाद में समझ आता है कि ज्ञान अथाह है.
भगवान गणेश के सूंड का महत्व
भगवान गणेश की सूंड को लेकर मान्यता है कि सूंड को देखकर दुष्ट शक्तियां डरकर मार्ग से अलग हो जाती हैं. मान्यता के अनुसार सुख, समृद्धि व ऐश्वर्य की प्राप्त करने के लिए गणपति की दायीं तरफ मुड़ी सूंड की पूजा करना चाहिए. वहीं अगर किसी शत्रु को पराजित करना हो तो तो बायीं तरफ मुड़ी सूंड की पूजा करना चाहिए.
कैसे पड़ा लंबोदर नाम
भगवान गणेश को लांबोदर कहे जाने को लेकर ब्रह्मपुराण में वर्णन मिलता है कि भगवान गणेश दिन भर माता पार्वती का दूध पीते थे. उन्हें ऐसा लगता था कि कहीं भैया कार्तिकेय माता का दूध ना पी लें. इस दृश्य को देख कर पिता शिव ने कहा तुम बहुत दूध पीते हो कहीं तुम लंबोदर ना बन जाओ. तभी से उनका नाम लंबोदर पड़ गया. उनके लंबोदर होने के पीछे एक कारण यह भी माना जाता है कि वे हर अच्छी-बुरी बात को पचा जाते हैं.
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भगवान गणेश के अन्य अंगों के बारे में
गणपति का हाथी जैसा सिर होने की वजह से उन्हे गजानन कहा जाता है. उनके बड़े कान इस बात के सूचक हैं कि हमें कान का कच्चा नहीं सच्चा होना चाहिए. इसके अलावा उनकी छोटी-पैनी आंखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि का प्रतीक हैं. मतलब सूक्ष्म आंखें जीवन में सूक्ष्म दृष्टि रखने की प्रेरणा देती हैं. जबकि उनके सूंड का मतलब है किसी भी दुर्गन्ध (विपदा) को दूर से ही पहचान सकें. भगवान गणेश के दो दांत हैं एक अखण्ड और दूसरा खण्डित. अखण्ड दांत श्रद्धा का प्रतीक है यानि श्रद्धा हमेशा बनाए रखना चाहिए. खण्डित दांत है बुद्धि का प्रतीक, इसका अर्थ है कि आपकी बुद्धि भ्रमित हो, परंतु श्रद्धा नहीं डगमगाना चाहिए. (Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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Tags: Dharma Aastha, Lord ganapati, Religion

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