यमन में पैदा 1 आंख वाला बच्चा दुनिया में वायरल: भारत में भी मिले ऐसे केस, विटामिन-मिनरल्स की कमी और घरवालों… – Dainik Bhaskar

यमन के अल-बायदा में महिला ने एक आंख वाले बच्चे को जन्म दिया। उसकी सांस जन्म के 7 घंटे तक ही चलीं। गल्फ न्यूज के अनुसार बच्चे का जन्म पिछले हफ्ते बुधवार को हुआ था। इस तरह के बच्चों का जन्म कोई नई बात नहीं है। भारत में भी ऐसे कई मामले सामने आते हैं। सवाल उठता है कि ऐसे अबनॉर्मल बर्थ के क्या कारण हैं।
बच्चे को देख सब रह गए थे हैरान
यमन के अल-बायदा के रदा शहर में हुसैन अल अब्बासी अपनी प्रेग्नेंट पत्नी जाहरा को अल हिलाल अस्पताल लेकर पहुंचे थे। जब बच्चा पैदा हुआ तो उसकी 1 ही आंख थी। डॉक्टरों के अनुसार यह अपनी तरह का पहला मामला है, लेकिन मेडिकल साइंस की किताबों में इसका जिक्र है। इसे साइक्लोप्स (Cyclops) कहा जाता है। यमन के पत्रकार करीम जराई के अनुसार उस बच्चे की एक ही ऑप्टिक नर्व थी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार दुनिया में 50 सालों में इस तरह के 6 मामले ही सामने आए हैं। ग्रीक और रोमन माइथोलॉजी में भी एक आंख वाले जीव का जिक्र है। इसे साइक्लोप्स कहा जाता है।
बीमारी को भारत में समझते हैं अजूबा
झारखंड के साहिबगंज के सदर अस्पताल में एक विकृत बच्चे ने जन्म लिया था। एलियन जैसे दिखने वाले इस बच्चे को कुछ लोग ने भगवान का चमत्कार बता दिया था। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 4 पैर और 2 प्राइवेट पार्ट के साथ जन्मे बच्चे की लोगों ने पूजा करनी शुरू कर दी थी। भारत में ऐसे बच्चों को किसी अजूबे से कम नहीं माना जाता। अगर ऐसा बच्चा जन्म लेता है तो दूर-दूर के गांव से लोग बच्चे को भगवान समझकर पूजने लगते हैं। हालांकि मेडिकल साइंस इसे बीमारी मानता है। डॉक्टरों के अनुसार ऐसे बच्चों का इलाज तुरंत होना चाहिए।
हर साल ऐसे लाखों बच्चे जन्म लेते हैं
दुनिया के हर देश में कुछ नवजात बच्चों में इस तरह की विकृति देखी जाती है। पूरी दुनिया में हर साल 80 लाख बच्चे अबनॉर्मल पैदा होते हैं। इनमें हर साल 33 लाख बच्चे 5 साल की उम्र से पहले ही अपनी जान गंवा देते हैं। वहीं, 32 लाख बच्चे जो बच जाते हैं वह स्थायी रूप से विकलांगता का शिकार हो जाते हैं। इनमें से 15 लाख बच्चों का इलाज संभव भी होता है। हालांकि डॉक्टर्स के मुताबिक इस तरह के बच्चों की लाइफ ज्यादा नहीं होती है।
क्यों पैदा होते हैं एबनॉर्मल बच्चे
वुमन भास्कर को दिल्ली स्थित तीरथराम हॉस्पिटल की गाइनैकोलाजिस्ट डॉ. सुनीता वशिष्ठ ने बताया कि अधिकतर मामलों में यह जेनेटिक वजहों से होता है। वहीं, फोलिक एसिड, कैल्शियम, आयरन की कमी भी इस तरह की अबनॉर्मल बर्थ का कारण बन जाती है।
टेस्ट से चल सकता है बीमारी का पता
गाइनैकोलाजिस्ट डॉ. सुनीता वशिष्ठ के अनुसार जो भी महिला गर्भवती है उसे डॉक्टर से लगातार चेकअप करवाना चाहिए। कई बार महिलाएं एक्सरे या अन्य टेस्ट नहीं करवातीं। ऐसी लापरवाही से बचना चाहिए। प्रेग्नेंट महिलाओं को डबल मार्कर टेस्ट, ट्रिपल मार्कर टेस्ट और एनआईपीटी (NIPT) टेस्ट जरूर कराने चाहिए। वहीं, गर्भ धारण करने के बाद का पहला अल्ट्रासाउंड व 20 हफ्ते पर एनॉमली स्कैन अवश्य कराएं। गर्भावस्था के 18वें से लेकर 21वें सप्ताह के बीच किए जाने वाले अल्ट्रासाउंड टेस्ट को एनॉमली स्कैन कहते हैं। इसमें मां के गर्भ की जांच की जाती है और इसके जरिए कोख में पल रहे बच्चे और मां की सेहत का पता लगाया जाता है।
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