वो नया धर्म क्या है जिस पर छिड़ी है अरब देशों में बहस – BBC हिंदी

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मिस्र में धार्मिक एकता के लिए शुरू हुई मुहिम मिस्र फैमिली हाउस की दसवीं वर्षगांठ के मौके पर अल अज़हर के शीर्षस्थ इमाम अहमद अल तैय्यब ने अब्राहमी धर्म की खूब आलोचना की है.
उनकी आलोचना ने अब्राहमी धर्म को एक बार फिर से सुर्खियों में ला दिया है, इस धर्म को लेकर बीते एक साल से अरब देशों में सुगबुगाहट देखने को मिली है.
अभी तक अब्राहमी धर्म के अस्तित्व में आने की कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. ना तो इस धर्म की स्थापना के लिए किसी ने नींव रखी है और ना ही इसके अनुयायी मौजूद हैं. इतना ही नहीं, इसका कोई धार्मिक ग्रंथ भी उपलब्ध नहीं है.
ऐसे में सवाल यही है कि फिर अब्राहमी धर्म है क्या. फ़िलहाल इसे धर्म संबंधी एक प्रोजेक्ट माना जा सकता है. इस प्रोजेक्ट के तहत पिछले कुछ समय में इस्लाम, ईसाई और यहूदी- इन तीनों धर्म में शामिल एक समान बातों को लेकर पैगंबर अब्राहम के नाम से धर्म बनाने की कोशिशें शुरू हुई हैं.
इसका उद्देश्य इन तीनों धर्म में शामिल आस्था और विश्वास से जुड़ी लगभग एक जैसी बातों पर भरोसा करना है. साथ ही आपसी मतभेदों को बढ़ाने वाली बातों को कोई तूल नहीं देना भी इसमें शामिल है.
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आपसी मतभेदों की परवाह किए बिना लोगों और राज्यों में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से इस विचार को बढ़ावा भी दिया जा रहा है.
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दरअसल इस धर्म को लेकर चर्चाओं का दौर करीब एक साल पहले शुरू हुआ है औ इसको लेकर विवाद भी देखने को मिले हैं.
हालांकि बहुत लोग अभी भी समझने की कोशिश कर रहे हैं कि इमाम ने इस मुद्दे की चर्चा क्यों की. क्योंकि अभी तमाम लोग ऐसे हैं जिन्होंने इस धर्म के बारे में पहली बार अल तैयब से ही सुना है.
अल-अज़हर के शेख द्वारा दिए गए भाषण में विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के बीच सह-अस्तित्व की बात शामिल है.
मिस्र के अलेक्जेंड्रिया में 2011 की क्रांति के बाद पोप शेनौदा तृतीय और अल-अज़हर के एक प्रतिनिधिमंडल के बीच बातचीत के बाद मिस्र फैमिली हाउस के गठन पर विचार किया गया था.
दो धर्मों के बीच सह-अस्तित्व और सहिष्णुता के बारे में बात करना तार्किक और अपेक्षित भी है. यह भी कहा जा रहा है कि शेख अल-अज़हर ने फैमिली हाउस से अब्राहमी धर्म के हिमायतियों पर टिप्पणी करना उचित समझा.
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अल-तैय्यब ने इस मामले पर बात शुरु करते हुए कहा, "वे निश्चित रूप से दो धर्मों, इस्लामी और ईसाई के बीच भाईचारे को भ्रमित करने और दो धर्मों के मिश्रण और विलय को लेकर उठ रही शंकाओं के बारे में बात करना चाहते हैं."
उन्होंने कहा, "ईसाई धर्म, यहूदी धर्म और इस्लाम को एक ही धर्म में मिलाने की इच्छा रखने का आह्वान करने वाले लोग आएंगे और कहेंगे कि सभी बुराईयों से छुटाकार दिलाएंगे."
अल-तैय्यब ने नए अब्राहमी धर्म के निमंत्रण को अस्वीकार किया है. उन्होंने कहा कि इसके ज़रिए जिस नए धर्म के निर्माण की बात हो रही है, उसका ना तो कोई रंग है और ना ही उसमें कोई स्वाद या गंध होगा.
उनहोंने यह भी कहा कि अब्राहमी धर्म के पक्ष में प्रचार करने वाले कहेंगे कि लोगों के आपसी विवाद और संघर्ष को ख़त्म करेंगे लेकिन वास्तविकता में यह अपनी मर्ज़ी से आस्था और विश्वास चुनने की स्वतंत्रता ज़ब्त करने का आह्वान है.
अल तैय्यब ने यह भी कहा कि अलग अलग धर्मों को एक साथ लाने का आह्वान यथार्थ और प्रकृति की सही समझ विकसित करने के बदले एक परेशान करने वाला सपना है. उनके मुताबिक सभी धर्म के लोगों को एक साथ लाना असंभव है.
अल-तैय्यब ने कहा, "दूसरे के विश्वास का सम्मान करना एक बात है, और उस विश्वास को मानने लगना दूसरी बात है."
अब्राहमी धर्म को लेकर अल तैय्यब की बातों की सोशल मीडिया पर कई लोगों ने प्रशंसा की है, जिसमें अब्दुलाह रुश्दी भी शामिल हैं, उन्होंने कहा है कि अल तैय्यब ने अब्राहमवाद के विचार को शुरुआती अवस्था में मार डाला है.
जबकि अन्य ने कहा कि "विवाद और संघर्ष को समाप्त करने वाले इस आह्वान पर कोई आपत्ति नहीं है,."
अल-अज़हर के शेख़ ने अपने संबोधन में अब्राहमी धर्म के आह्वान के किसी भी राजनीतिक आयाम का उल्लेख नहीं किया.
लेकिन सोशल मीडिया पर कुछ दूसरे लोगों ने इस निमंत्रण को "धार्मिक आवरण में लिपटे राजनीतिक आह्वान" के रूप में अस्वीकार किया है.
उनमें से मिस्र के कॉप्टिक पादरी, हेगोमेन भिक्षु नियामी भी हैं, जिन्होंने कहा था कि "अब्राहमी धर्म, धोखे और शोषण की आड़ में एक राजनीतिक आह्वान है."
नए धर्म को अस्वीकार करने वालों में वे लोग भी हैं जो इसे वैचारिक तौर पर ठीक मानते हैं लेकिन वे इसे विशुद्ध रूप से राजनीतिक खेमेबंदी के तौर पर देखते हैं, जिसका उद्देश्य विशेष रूप में अरब देशों में इसराइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाना और बढ़ाना है.
"अब्राहमिया" शब्द का उपयोग और इसके आसपास के विवाद की शुरुआत पिछले साल सितंबर में संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन द्वारा इसराइल के साथ हालात को सामान्य बनाने के समझौते पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी.
संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके सलाहकार जेरेड कुशनर द्वारा प्रायोजित समझौते को "अब्राहमी समझौता" कहा जाता है.
अमेरिकी विदेश विभाग की ओर से इस समझौते पर जारी घोषणा में कहा गया था, "हम तीनों अब्राहमिक धर्मों और सभी मानवता के बीच शांति को आगे बढ़ाने के लिए अंतर-सांस्कृतिक और अंतरधार्मिक संवाद का समर्थन करने के प्रयासों को प्रोत्साहित करते हैं."
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यह पैराग्राफ़ हालात को सामान्य बनाने के समझौते के शुरुआती हिस्से में शामिल है. इससे ज़ाहिर होता है कि इज़राइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाना विशुद्ध रूप से राजनीतिक या आर्थिक सौदा नहीं था, बल्कि इसका सांस्कृतिक उद्देश्य भी था.
इसके बाद ही अलग अलग देशों के अलग अलग संप्रदाय के लोगों के बीच धार्मिक सहिष्णुता और आपसी संवाद के बारे में बात शुरू हुई, जिसे बाद में "एकीकृत अब्राहमी धर्म" के रूप में जाना जाने लगा है.
इसराइल के साथ हालात सामान्य करने के बीच में अब्राहमी धर्म की परियोजना को लाने के चलते सामान्य संबंधों का विरोध करने वालों को बहाना मिल गया, वे नए धर्म के विरोध के बहाने हालात को सामान्य बनाने विरोध भी करने लगे.
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अब्राहमी धर्म को सोशल नेटवर्किंग साइट पर बढ़ावा देने का आरोप संयुक्त अरब अमीरात पर लगा है. संयुक्त अरब अमीरात ने इसराइल के साथ हालात को सामान्य बनाने के समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. इसके बाद से दोनों देशों के बीच सांस्कृति सहमति और दूसरे क्षेत्रों में सक्रिय आदान प्रदान दिख रहा है.
कईयों ने अब्राहमी धर्म को लेकर आह्वान को अब्राहमी फैमिली हाउस से भी जोड़ा है. 2019 की शुरुआत में दुबई के शासक, मोहम्मद बाम ज़ायद ने अबू धाबी में "पोप फ्रांसिस और शेख अल अज़हर अहमद अल-तैय्यब की संयुक्त ऐतिहासिक यात्रा की स्मृति में" स्थापित करने का आदेश दिया था.
यह इसराइल के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के समझौते से डेढ़ साल पहले हुआ था. अब्राहमी फैमिली हाउस में एक मस्जिद, एक चर्च और एक अराधना करने की जगह सायनागॉग बना हुआ है, इसे 2022 में आम लोगों के लिए खोला जाएगा.
इसको बढ़ावा देने वालों में संयुक्त अरब अमीरात के शेख सुल्तान बिन ज़ायद मस्जिद के मौलवी वसीम यूसफ़ भी हैं हालांकि कुवैत के प्रसिद्ध धर्म गुरु ओथमान अल खमीस ने इस क़दम की आलोचना की थी.
"अब्राहमी" पर विवाद केवल अल-अज़हर के शेख़ की राय के चलते नहीं है.
इस साल के मार्च में इराक में सदरवादी आंदोलन के नेता मुक्तदा अल-सदर का एक ट्वीट किया था, जिसके मुताबकि "इस्लाम धर्म" और "धर्मों की एकता" के बीच "कोई विरोधाभास नहीं" था.
"अब्राहमी समझौते" पर हस्ताक्षर और "नए धर्म" की चर्चा के बाद, इस्लाम के मौलवियों और धर्म गुरुओं ने इसको अस्वीकार करने की पहल शुरू कर दी. तारिक अल सुवैदान जैसे कुछ धर्म गुरुओं ने इसकी तुलना ईशनिंदा से की.
इस साल फरवरी में, मुस्लिम विद्वानों के अंतर्राष्ट्रीय संघ, मुस्लिम विद्वानों की लीग और अरब माघरेब लीग ने एक सम्मेलन आयोजित किया जिसका शीर्षक था: "अब्राहमी धर्म पर इस्लामी उलेमाओं की स्थिति".
हालांकि इस विचार का बचाव करने वाले और इसे शांति का रास्ता बताने वाले भी कई हैं.
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