जब भी बहुपति प्रथा की बात होती है तो हमें सिर्फ एक ही उदाहरण याद आता है, द्रौपदी का। द्रौपदी महारानी कुंती के पांचों पुत्रों पाण्डवों की पत्नी थीं इसलिए द्रौपदी को पांचाली भी कहा जाता है। लेकिन कम लोग जानते हैं कि द्रौपदी से पहले भी कई महिलाएं हो चुकी हैं जिनका एक से अधिक पुरुषों से संबंध रह चुका है। पुराणों में दो महिलाओं खास तौर पर जिक्र आता है जिनका एक से अधिक पुरुषों से विवाह हुआ था। द्रौपदी के संग पांचों भाई की शादी के विषय पर जब कुंती युधिष्ठिर से पूछती हैं कि क्या इससे पहले भी इतिहास में ऐसा कोई उदाहण है तो युधिष्ठिर बताते हैं कि ऐसा पहले हो चुका है। प्रचेती और जटिला नामक दो कन्याओं का पहले ही बहुपति विवाह हो चुका है। आइए, जानते हैं इनके बारे में और द्रौपदी के 5 पतियों के रहस्य को।
जब अर्जुन द्रौपदी को स्वयंवर में जीतकर अपने अन्य भाइयों के साथ माता कुंती के पास आए और बोले, देखो माताश्री आज हम भिक्षा में आपके लिए क्या लाए हैं। कुंती ने बिना देखे ही कह दिया कि आपस में बांट लो। उस काल में मुख से निकले शब्दों का बहुत महत्व होता था। जैसे ही कुंती पलटकर देखती हैं, वह चिंतित हो जाती हैं कि उन्होंने यह क्या कह दिया! द्रौपदी को भिक्षा कहने पर वह अर्जुन और भीम को डांट ही रही होती हैं कि युधिष्ठिर वहां आ जाते हैं। सारी बात समझने के बाद युधिष्ठिर कुंती के सवाल का जवाब देते हुए कहते हैं कि प्राचीन काल में भी ऐसा हो चुका है कि एक स्त्री के कई पति हुए हैं और यह धर्म संगत रहा है।
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इसके बाद श्रीकृष्ण वहां आते हैं और बताते हैं कि कैसे द्रौपदी के लिए कुंती के मुख से ये शब्द निकले और क्यों द्रौपदी को पांच पतियों की पत्नी बनना होगा। श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को याद दिलाया कि पिछले जन्म में कैसे द्रौपदी ने भगवान शिव की तपस्या कर ऐसे वर की कामना की थी, जो धर्मराज की तरह न्याय प्रिय, ज्ञानी, सौंदर्य में सबसे उत्तम, सर्वश्रेष्ठ गदाधारी और महान धनुर्धर हो, जो सर्वगुण संपन्न हो। क्योंकि इतने गुण एक ही पुरुष में होना संभव नहीं है इसलिए द्रौपदी को अपने वरदान के फलस्वरूप 5 पति मिले हैं।
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सृष्टि की रचना के बाद इसके संचालन के लिए ब्रह्माजी ने अपने 10 मानष पुत्रों को उत्पन्न किया जिन्हें प्रचेता कहा गया है। इन्हें सृष्टि के संचालन की जिम्मेदारी सौंपी। चंद्रमा ने इन सभी प्रचेताओं का विवाह वृक्ष कन्या और यक्ष की बहन मारिषा से कराया। प्रचेताओं से विवाह होने के कारण इन्हें प्रचेती और प्रचीती नाम से जाना जाने लगा। फिर प्रचेताओं और चंद्रमा के आधे-आधे तेज से मारिषा ने दक्ष प्रजापति को जन्म दिया। दक्ष प्रजापति ने ही सृष्टि संचालन का कार्य आगे बढ़ाया और मैथुनी सृष्टि का विकास हुआ। इन्होंने अपनी 10 कन्याओं का विवाह धर्म से करवाया, 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से और इन्हीं की पुत्री सती से भगवान शिव का विवाह हुआ था।
गौतम ऋषि के कुल में जटिला नाम की कन्या हुई। इनका विवाह 7 ऋषियों से हुआ था। संस्कृत साहित्य में गौतम का नाम अनेक विद्याओं से संबंधित है। वास्तव में गौतम ऋषि के गोत्र में उत्पन्न किसी भी व्यक्ति को ‘गौतम’ कहा जा सकता है। अत: यह व्यक्ति का नाम न होकर गोत्र का नाम है। वेदों में गौतम मंत्रद्रष्टा ऋषि माने गए हैं। साथ ही न्याय सूत्रों के रचियता भी गौतम माने जाते हैं। इन्हीं के वंशज श्वेतकेतु हुए जिन्होंने विवाह व्यवस्था का आरंभ किया। इससे पूर्व कोई भी पुरुष और स्त्री किसी भी स्त्री अथवा पुरुष से संबंध बना सकता था।
श्वेतकेतु एक बार अपनी माता और पिता के साथ बैठे थे उसी समय एक ऋषि आए उनकी माता का हाथ पकड़ लिया और उन्हें अपने साथ चलने के लिए बोला। इससे श्वेतकेतु बड़े नाराज हुए और उन्होंने विवाह की व्यवस्था का आरंभ किया ताकि स्त्री और पुरुष मर्यादित रहें।
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