फ़्रांस की धर्मनिरपेक्ष पहचान पर क्यों गहरा हो रहा है विभाजन – BBC हिंदी

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बीते सप्ताहांत पूरे फ़्रांस में इकट्ठी हुई भीड़ में कुछ ऐसा था, जो दिखाई नहीं दे रहा था.
राष्ट्रीय एकता के इस नाटकीय प्रदर्शन में धर्मनिरपेक्षता और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर देश के नज़रिए को लेकर बढ़ते असंतोष को छिपाने की कोशिश दिख रही थी. पेरिस के बाहरी हिस्से में एक शिक्षक सैमुअल पैटी की गला काट कर की गई हत्या के विरोध में ये प्रदर्शन हुए हैं.
इतिहास पढ़ाने वाली फ़ातिहा अगद-बोद्जहालात ने फ़्रेंच रेडियो को बताया, "पिछले साल एक छात्र ने मुझसे कहा कि पैगंबर मोहम्मद की शान में गुस्ताखी करने वाले किसी भी शख़्स की हत्या जायज़ है. ये चीज़ें उनके परिवार में सुनाई गई बातों से आती हैं."
फ़ातिहा अभिव्यक्ति की आज़ादी के बारे में शिक्षा देने के लिए डोनाल्ड ट्रंप और इमैनुएल मैक्रों के अलावा वर्षों से पैगंबर मोहम्मद के कार्टूनों का भी इस्तेमाल कर रही हैं.
लेकिन, उनके पेशे में मौजूद कई लोग छात्रों के एक तबके में बन रहे चिंताजनक ट्रेंड के बारे में बताते हैं. ये छात्र फ़्रांसीसी क़ानूनों और मूल्यों को लेकर ख़ुद को सहज नहीं पा रहे हैं.
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देश की धर्मनिरपेक्षता (लाइसाइट) फ़्रांस की राष्ट्रीय पहचान के केंद्र में है. फ़्रांस की धर्मनिरपेक्षता देश में क्रांति के दौर के बाद बनाई गई स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की अवधारणा जैसी ही महत्वपूर्ण है.
लाइसाइट के इस सिद्धांत में कहा गया है कि चाहे कक्षाएँ हों, दफ़्तर हों या मंत्रालय- इन्हें धर्म से मुक्त रखा जाना चाहिए. राज्य कहता है कि किसी ख़ास धर्म की भावनाओं की सुरक्षा करने के लिए अभिव्यक्ति की आज़ादी पर लगाम लगाना देश की एकता को हतोत्साहित करता है.
लेकिन, इस बात के प्रमाण हैं कि फ़्रांस में ऐसे लोगों की तादाद बढ़ रही है, जो इस तर्क को ठीक नहीं मानते. ये लोग चाहते हैं कि धर्मनिरपेक्षता और बोलने की आज़ादी के इर्द-गिर्द बनाई गई सीमाओं में बदलाव किया जाना चाहिए.
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पेरिस में एक जगह दीवार पर बनाई गई शार्ली एब्डो के मारे गए कर्मचारियों को समर्पित एक कलाकृति
एक पूर्व शिक्षक माइकल प्राज़ान कहते हैं कि यह असंतोष 2000 के दशक में तब बढ़ना शुरू हुआ, जब सरकार ने स्कूलों में धार्मिक प्रतीकों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी.
उस वक़्त प्राज़ान पेरिस के उपनगरीय इलाक़े में पढ़ाते थे. वहाँ पर मुस्लिमों की बड़ी तादाद थी.
प्राज़ान मानते हैं कि शिक्षक अपने और कुछ छात्रों के बीच बढ़ती खाई का हल निकालने में नाकाम रहे.
वे कहते हैं, "अगर कक्षा में कोई छात्र चरमपंथी गतिविधियों पर ख़ुशी मनाने जैसी समस्या पैदा करता है, तो हमें तुरंत ही उस पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए. इससे पहले कि यह इंटरनेट पर फैल जाए और इससे किसी शिक्षक की जान को ख़तरा पैदा हो."
फ़्रांसीसी पत्रिका शार्ली एब्डो ने वर्ष 2015 में पैगंबर मोहम्मद के कार्टून छापे थे, जिसके बाद बंदूकधारियों ने उस पर हमला किया था. शिक्षकों का कहना है इसके बाद से ही उन्होंने चीज़ों में बदलाव महसूस किया है.
दर्शन पढ़ाने वाली एलेक्जांड्रा गिराट से उस समय कुछ छात्रों ने कहा था, "वे इसी के लायक़ थे. क्योंकि इन कार्टूनों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता था. उन्हें पैगंबर को इस तरह से नहीं दिखाना चाहिए था."
सर्वेक्षणों से पता चलता है कि इन हमलों के बाद फ़्रांस की आम जनता की राय सख़्त हुई है. ज़्यादातर लोग अब पत्रिका के कार्टून छापने के फ़ैसले के समर्थन में हैं. पहले ज़्यादातर लोगों का कहना था कि यह एक "बिना वजह उकसाने" वाली हरकत थी.
दूसरी ओर, प्रतिक्रिया देने वाले क़रीब 70 फ़ीसदी मुसलमानों का मानना है कि इन तस्वीरों को छापना ग़लत था.
लेकिन, दोनों ही सैंपल ग्रुप्स ने हमलों की कड़ी निंदा की.
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धार्मिक पहचान और बोलने की आज़ादी के नाम पर बढ़ते विभाजन की जड़ें बेहद जटिल हैं. इनमें कई देशों में चल रहे संघर्षों का प्रभाव भी शामिल है. साथ ही मुस्लिम आप्रवासियों की पीढ़ियों में नस्लवाद और सामाजिक रूप से हाशिए पर पहुँचने जैसी चीज़ों का भी प्रभाव दिखाई दे रहा है.
कुछ लोगों का कहना है कि फ़्रांस के राष्ट्रीय मूल्य अगर आप पर लागू होते नहीं दिखाई देते हैं, तो उनकी रक्षा करना मुश्किल है.
ऐसे में सैमुअल पैटी जैसे शिक्षकों के पास क्या चारा बचता है, जिन्हें अभिव्यक्ति की आज़ादी के बारे में पढ़ाने की ज़िम्मेदारी दी गई है?
रविवार को हुई रैली में मौजूद एक महिला का कहना था कि फ़्रांस के नेताओं को क़दम उठाने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा, "हम इन जटिल धार्मिक, नैतिक और दार्शनिक सवालों से जूझने के लिए इन शिक्षकों को अकेला नहीं छोड़ सकते हैं. उन्हें दिशा दिखाए जाने की ज़रूरत है."
इतिहासकार और शिक्षिका इयानिस रोडर ने फ़्रेंच रेडियो को बताया, "हम वर्षों से ख़तरे की घंटी सुन रहे हैं. मुझे लगता है कि अब हमें ज़मीन पर मौजूद हक़ीक़त को स्वीकार कर लेना चाहिए."
माना जा रहा है कि फ़्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने स्कूलों में सुरक्षा को पुख़्ता करने के लिए एक ठोस योजना की बात कही है. उन्होंने भरोसा दिलाया है कि डर का माहौल ख़त्म होगा.
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पैटी के हत्यारे के समर्थन में ऑनलाइन संदेश डालने वाले 80 से ज़्यादा लोगों की पुलिस जाँच करेगी. साथ ही कट्टरपंथी गुटों से संपर्क पर भी नज़र रखी जा रही है.
सरकार दबाव में है. एक वरिष्ठ विपक्षी नेता ने मैक्रों के रुख़ की आलोचना की है और उन्होंने "आंसू नहीं हथियार" का आह्वान किया है.
लेकिन, गुज़रे पाँच साल में इतने सारे हमलों के बावजूद विभाजन और संशय में लगातार हर बार थोड़ी बढ़ोतरी ही हुई है.
छात्र पैटी की हत्या पर किस तरह की प्रतिक्रिया देंगे, यह नवंबर से पहले स्पष्ट नहीं हो पाएगा. तब स्कूलों को दो हफ़्ते के ब्रेक के बाद खोला जाएगा.
2015 के हमले के बाद मरने वालों की याद में पूरे देश में रखे गए एक मिनट के मौन में हिस्सा लेने से कुछ बच्चों ने इनकार कर दिया था.
पूरे देश में स्कूलों के खुलने के बाद पैटी की याद में ऐसा ही कार्यक्रम करने की योजना है. एक बार फिर शिक्षकों को देखना होगा कि इस पर छात्रों की क्या प्रतिक्रिया होती है.
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