देश के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में बनी पांच सदस्यों की खंडपीठ ने 6 सितंबर 2018 को समलैंगिकता को अपराध माननेवाली धारा 377 को खत्म कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के अनुसार, अब वयस्क व्यक्तियों द्वारा स्वेच्छा से बनाए गए समलैंगिक संबंध अपराध नहीं होंगे। वैसे आपको बतादें कि लैंगिक वर्जनाओं को लेकर हमारे शास्त्रों और पुराण में जो कथाएं मिलती हैं उनसे यह बात साबित होता है कि उन दिनों भी भारतीय समाज काफी परिपक्व था और इसे गलत नहीं समझा जाता था।
19वीं शताब्दी में कर्नाटक के प्रसिद्ध म्यूजिक कंपोजर मुत्तुस्वामी दीक्षितर ने अपने ग्रंथ ‘नवग्रह कीर्ति’ में बुध ग्रह को नपुंसक, साथ ही उसे कुछ स्त्री और कुछ पुरुष भी बताया है। दीक्षितर अपने लेखन में पुराणों की एक घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं कि बृहस्पति ग्रह को पता चला कि उनकी पत्नी तारा (सितारों की देवी) के गर्भ में उनके प्रेमी चंद्रमा (चंद्रदेवता) का बच्चा पल रहा है, वह गर्भ में पल रहे उस शिशु को नपुसंक होने का शाप दे देते हैं। बाद में बुध इला नाम की एक स्त्री से विवाह करते हैं, जो पुरुष से महिला बनी थी।
दरअसल इला अपने पुरुष रूप में इल नाम के राजा थे। वह भूलवश उस वन में चले जाते हैं, जिसे माता पार्वती ने शाप दिया था कि जो भी पुरुष वन में आएगा, वह स्त्री हो जाएगा। जब राजा इल से इला बन गए तब बुध व उन पर मोहित हो गए। इल और बुध के संबंध से राजा पुरुरवा का जन्म हुआ यहीं से चंद्रवंश की शुरुआत हुई। इल से इला बनने की कहानी एक उदाहरण मात्र है। धर्मग्रंथों में ऐसे कितने ही घटनाक्रमों का जिक्र किया गया है, जहां स्त्री से पुरुष और पुरुष से स्त्री बनने का प्रसंग आया है।
देवीभाग्वत् पुराण के छठे स्कंध में एक कथा है कि, एक बार देवऋषि नारद का अभिमान चूर करने के लिए भगवान विष्णु नारदजी को लेकर कन्नौज के सरोवर में डुबकी लगाने के लिए कहते हैं। सरोवर से बाहर आने पर नारदजी स्त्री रूप मे बाहर निकलते हैं और अपने वास्तविक स्वरूप को भूल चुके हुए हैं। उस समय तालध्वज नाम के राजा उनको देखकर मोहित हो जाते हैं और उनसे विवाह कर लेते हैं। नारदजी कई बच्चों की माता बनते हैं और एक युद्ध में इनके सभी बच्चे मारे जाते हैं। इससे वह फूट-फूटकर रोने लगते हैं तब भगवान विष्णु उन्हें फिर से नारद बना देते हैं और कहते हैं कि माया इसी को कहते हैं।
श्रीकृष्ण लीला में एक प्रसंग मिलता है कि कान्हा के साथ रासलीला रचाने के लिए भगवान शिव गोपी का रूप धारण करके आते हैं। इस रूप को धरने के लिए भोलेनाथ यमुना में डुबकी लगाने उतरते हैं और जब बाहर आते हैं तो गोपी (गाय पालन करनेवाली महिला) चुके होते हैं। देवी यमुना उनका ऋंगार करती हैं और वह रास मंडल में प्रवेश कर भगवान श्रीकृष्ण के साथ विहार करते हैं। भगवान शिव के इस रूप को धारण करने के कारण व्रज में गोपेश्वर महादेव का मंदिर भी स्थित है। कहा जाता है कि इनके दर्शन के बिना व्रज की यात्रा अधूरी रहती है।
एक कथा के अनुसार महाभारत युद्ध में विजय के लिए एक राजकुमार की बलि देवी को चढ़ाना था। इसके लिए अर्जुन के पुत्र इरावन तैयार हुए लेकिन उनकी शर्त थी कि वह एक रात के लिए विवाह करना चाहते हैं। लेकिन कोई राजकुमारी इसके लिए तैयार नहीं हुई। ऐसे में श्रीकृष्ण ने स्त्री रूप धारण करके इरावन से विवाह किया और अगले दिन इरावन की बलि दी गई।
दक्षिण भारत के देवता अयप्पा के जन्म की कथा भी अद्भुत है। महिषी नाम की एक राक्षसी को भगवान विष्णु का वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु तभी हो सकती है जब भगवान शिव और विष्णु की संतान हो। इस असंभव वरदान को पाकर वह अत्याचारी हो गई। सागर मंथन के बाद भगवान विष्णु ने जब मोहिनी रूप धारण किया तो भगवान शिव मोहिनी पर मोहित हो गए और इससे अयप्पा का जन्म हुआ। अयप्पा ने महिषी का वध कर दिया।
इस तरह पौराणिक कथाओं में अप्राकृतिक संबंधों को लेकर कई कथाएं हैं और इनमें किसी तरह का अपराध बोध नहीं दिखाता है। दरअसल हमारे धर्मग्रंथों में ऐसा कहा गया है कि सृष्टि में केवल ब्रह्म ही पुरुष है और बाकी सृष्टि में स्त्री पुरुष दिखने वाले जीव-जंतु प्रकृति स्वरूप यानी स्त्री हैं। कठोपनिषद् और गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद स्त्री हों या पुरुष सभी पितर यानी पुरुष रूप में हो जाते हैं।
भारतीय दर्शन में पुनर्जन्म की अवधारणा के अनुसार आत्मा अमर है, जो समय-समय पर शरीर रूपी वस्त्रों को बदलकर जन्म लेती रहती है। नया जन्म किस रूप में होगा और आयु कितनी होगी, साथ ही जीवन कैसा होगा, यह सब व्यक्ति के पूर्वजन्म के कर्मों पर आधारित होना बताया जाता है। कोई पेड़ बनेगा, पहाड़ बनेगा, स्त्री बनेगा, पुरुष बनेगा या स्त्री होकर पुरुष के हृदय के साथ जन्म लेगा और पुरुष होकर स्त्री हृदय के साथ जन्म लेगा, यह सब पूर्वजन्म के कर्मों पर निर्धारित है।
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