नयी दिल्ली, 23 जनवरी (भाषा) नेताजी सुभाषचंद्र बोस का निधन एक रहस्य है और उनकी गुमशुदगी को लेकर कहानियां लोकप्रिय लोक साहित्य का हिस्सा हैं। मगर बोस के परिवार और उनके जीवन तथा काम पर करीब से शोध करने वालों का कहना है कि असल में उनके प्रति सच्चा सम्मान उनकी समावेशिता और धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा का पालन करना तथा उनके निधन के रहस्य से पर्दा उठाना है।
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को घोषणा की थी कि 'आजाद हिंद फौज' के संस्थापक बोस की एक भव्य प्रतिमा राष्ट्रीय राजधानी में इंडिया गेट पर स्थापित की जाएगी, जो उनके प्रति भारत की "कृतज्ञता" का प्रतीक है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया था कि जब तक ग्रेनाइट से बनी मूर्ति बनकर वहां स्थापित नहीं हो जाती तब तक उनकी ‘होलोग्राम की प्रतिमा’ वहां लगाई जाएगी।
मोदी की घोषणा के बाद बोस की बेटी अनीता बोस-फाफ ने कहा, ‘‘मेरे पिता ने एक ऐसे भारत का सपना देखा था जहां सभी धर्म शांतिपूर्वक सहअस्तित्व में रहते हों। सिर्फ मूर्ति ही नेताजी को श्रद्धांजलि नहीं होनी चाहिए। हमें उनके मूल्यों का भी सम्मान करना चाहिए।”
बोस के भाई के पोते चंद्र कुमार बोस ने सरकार से आग्रह किया कि देश में स्वतंत्रता सैनानी की विचारधार को लागू किया जाए।
उन्होंने कहा, “नेताजी का सम्मान सिर्फ उनकी प्रतिमा बनाने, संग्रहालय स्थापित करने या झांकी बनाने से नहीं हो सकता। नेताजी जैसी महान शख्सियत का सम्मान तभी हो सकता है जब उनकी भारत के निर्माण के लिए सभी समुदायों को एकजुट करने की समावेशी विचारधारा का पालन किया जाए और लागू किया जाए, जिसकी उन्होंने कल्पना की थी।”
यह माना जाता है कि बोस की मृत्यु 70 से अधिक वर्ष पहले हुई थी। उनकी मृत्यु की परिस्थितियों को लेकर कई सवाल हैं, मसलन, उनके निधन का समय, वर्ष और स्थान। इसे लेकर अब भी रहस्य है।
तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने मांग की है कि केंद्र 1945 में बोस के लापता होने से संबंधित फाइलों को सार्वजनिक करे। पार्टी का कहना है कि जापान के एक मंदिर में रखी अस्थियों, जिनके बारे में माना जाता है कि वह नेताजी की हैं, का डीएनए विश्लेषण कराना चाहिए।
बोस की जिंदगी और उनके निधन के रहस्य पर करीब से शोध करने वाले अनुज धर ने पीटीआई-भाषा से कहा, “दिल्ली के केंद्र में प्रतिमा स्थापित करना नेताजी की विरासत को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि है। उनके जीवन और कर्म को लेकर जो भी अध्ययन किया गया है, वह बताता है कि भारत को आजादी मिलने का श्रेय उन्हीं को जाता है। आने वाले समय में उनकी मृत्यु से संबंधित मुद्दों का निदान किया जाएगा।” धार ‘कॉनन्ड्रम: सुभाष बोसेज़ लाइफ आफ्टर डेथ’ के सह लेखक हैं।
‘बोस, द अनटोल्ड स्टॉरी ऑफ एन इनकॉनविनेंट नेशनलिस्ट’ के लेखक चंद्रचूड़ घोष ने कहा, “स्वतंत्र भारत में नेताजी के साथ जो व्यवहार किया गया उसके दो पहलू हैं। सबसे पहले, उन्हें हमेशा हाशिए पर रखा गया और इस तथ्य को कभी आधिकारिक रूप से नहीं माना गया कि उनकी ही गतिविधियों की वजह से ब्रिटिश राज का तेज़ी से खात्मा हुआ। दूसरे, सरकारों ने उनके अंत के सवाल को गुप्त रखा है। पिछली सरकार के खिलाफ इस मुद्दे पर मुखर रहने वाली मौजूदा राजग सरकार ने भी संप्रग सरकार के रुख का ही अनुसरण करने का फैसला किया है, जो अजीब है। ”
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