भास्कर एक्सप्लेनर: बांग्लादेश में 8 साल में हिंदुओं पर हुए 3600 हमले, इस्कॉन मंदिर भी निशाने पर; क्या है वजह? – Dainik Bhaskar

बांग्लादेश की राजधानी ढाका स्थित इस्कॉन (ISKCON) के राधाकांत मंदिर पर 200 कट्टरपंथियों की भीड़ ने श्रद्धालुओं पर हमला किया और मंदिर में तोड़फोड़ की। इस्कॉन की ओर से जारी बयान के मुताबिक, इस घटना में तीन श्रद्धालु घायल हो गए। बांग्लादेश में इस्कॉन मंदिर पर महज छह महीने के अंदर ये दूसरा हमला है। बांग्लादेश में पिछले कुछ वर्षों के दौरान अल्पसंख्यकों-खासतौर पर हिंदुओं पर हमले तेजी से बढ़े हैं।
ऐसे में चलिए समझते हैं कि आखिर क्या है बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर बढ़ते हमले की वजह? इन हमलों को लेकर भारत बांग्लादेश को घेरता रहा है? इस्कॉन क्या है और क्यों है कट्टरपंथियों के निशाने पर?
इस एक्सप्लेनर में आगे बढ़ने से पहले चलिए एक एक पोल में हिस्सा लेते हैं।
बांग्लादेश में इस्कॉन (ISKCON) मंदिर पर पिछले 13 वर्षों में छठा हमला
होली से ठीक एक दिन पहले, यानी 17 मार्च को राजधानी ढाका के वारी में स्थित इस्कॉन के राधाकांत मंदिर पर 200 कट्टरपंथियों ने हमला करके तोड़फोड़, लूटपाट और श्रद्धालुओं से मारपीट की। ये हालिया हमला हाल के वर्षों में बांग्लादेश में इस्कॉन और हिंदुओं पर बढ़ते हमलों में से एक था।
बांग्लादेश में इस्कॉन मंदिरों पर बढ़े हमले
बांग्लादेश में पिछले कुछ वर्षों में बढ़े हैं हिंदुओं पर हमले
बांग्लादेश में इस्कॉन मंदिर पर हालिया हमला इस देश के लिए नया नहीं है। 17 मार्च को हुआ हमला हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ बांग्लादेश में पिछले एक दशक से जारी हिंसा की एक और घटना थी।
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले का है खास पैटर्न
बांग्लादेश में पिछले कुछ वर्षों के दौरान हिंदुओं पर हमले में एक खास तरीका काम करता रहा है। पहले सोशल मीडिया के जरिए इस्लाम के अपमान की अफवाह फैलाई जाती है, जिसके बाद कुछ कट्टरपंथियों का समूह उन जगहों पर हमले करते हैं, जहां हिंदू रहते हैं।
उदाहरण के लिए पिछले साल बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के दौरान दुर्गा मंदिर में कुरान के कथित अपमान के एक फेक वायरल वीडियो की वजह से ही हिंदुओं के खिलाफ दंगे भड़क उठे थे।
बांग्लादेश में तेजी से घट रही हिंदुओं की आबादी
2011 की जनगणना के मुताबिक, 16.5 करोड़ की आबादी वाले बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 8.5% है, जबकि 90% से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। वहीं, अन्य अल्पसंख्यकों में बौद्ध 0.6% और ईसाई 0.4% ही हैं। बांग्लादेश में मुस्लिम और हिंदू दोनों मुख्यत: बंगाली हैं, यानी भाषा और सांस्कृतिक रूप से उनमें समानता है, लेकिन धर्म की वजह से उनकी दूरियों का कट्टरपंथी फायदा उठाते हैं।
बांग्लादेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 1980 के दशक में बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 13.5% थी। वहीं, 1947 में जब भारत, पाकिस्तान की आजादी के साथ बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान बना था, तो उस समय वहां हिंदुओं की आबादी करीब 30% थी।
करीब चार दशकों में बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 13.5% से घटकर 8.5% रह गई। बांग्लादेशी सरकार के 2011 के जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, एक दशक में हिंदुओं की संख्या में कम से कम 10 लाख की कमी आई।
डायचे वैली की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ढाका यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री और प्रोफेसर अब्दुल बरकत ने अपनी स्टडी में पाया कि पिछले कुछ सालों में सुरक्षा और आर्थिक वजहों से हर दिन करीब 750 हिंदू बांग्लादेश से पलायन कर रहे हैं। इनमें से ज्यादातर हिंदू भारत आने की कोशिश करते हैं।
क्या है बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ बढ़ रहे कट्टरपंथियों के हमले की वजह?
बांग्लादेश के गठन के बाद से ही अल्पसंख्यक होने की वजह से हिंदुओं पर हमले होते रहे हैं, लेकिन इन हमलों में पिछले एक दशक के दौरान बहुत तेजी आई है। 2009 में अवामी लीग की प्रमुख शेख हसीना के सत्ता में आने के कुछ सालों बाद से ही बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले बढ़े हैं।
एक नजर बांग्लादेश में हिंदुओं पर बढ़ते हमलों की वजह पर:
1. बांग्लादेश का धर्म इस्लाम, नाम के लिए धर्मनिरपेक्ष देश
बांग्लादेश का संविधान उसे एक सेक्युलर देश बताता है, लेकिन 1980 के दशक में उसने इस्लाम को अपना धर्म घोषित किया था। बांग्लादेश की बहुसंख्यक, यानी करीब 90% से ज्यादा आबादी मुस्लिम है। बांग्लादेश का धर्म इस्लाम होने से हिंदुओं की धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति अस्पष्ट है। इसी से यहां इस्लामिक कट्टरपंथियों का बोलबाला रहा और ये कट्टरपंथी अक्सर अल्पसंख्यक हिंदुओं को निशाना बनाते रहते हैं।
2. राजनीति पार्टियों की वोटों की राजनीति
बांग्लादेश में चुनावों के दौरान हिंदुओं पर हमले की घटनाएं बढ़ जाती हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि राजनीति पार्टियां मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के लिए हिंदुओं पर हमले को बढ़ावा देती हैं या इसके खिलाफ आंखें बंद किए रहती हैं। जानकारों का मानना है कि सत्ताधारी आवामी लीग और जमात-ए-इस्लाम ने पिछले एक दशक में अपने फायदे के लिए दो धर्मों के बीच की खाई चौड़ी करने का ही काम किया है।
3. शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग की तुष्टीकरण नीति
बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग जब 2009 में दोबारा सत्ता में आई थी, तो हिंदुओं को उनसे काफी उम्मीदें थी, लेकिन शेख हसीना के सत्ता में आने के बाद से हिंदुओं के खिलाफ हमले और बढ़े हैं।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, शेख हसीना ने अपने 12 सालों के शासन के दौरान मुस्लिम वोटर्स को अपने पाले में करने के लिए मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति अपना रखी है। पिछले एक दशक में बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथ को बढ़ावा मिला और 2011 के बाद से वहां हिंदुओं पर हमले बढ़े हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, वामपंथी राजनीतिक दल गणसहमति आंदोलन के मुख्य समन्वयक जुनैद साकी का कहना है कि शेख हसीना की पार्टी हिंदुओं पर हमले के लिए कट्टरपंथियों को जिम्मेदार ठहराती है, लेकिन सजा देने के लिए कोई कदम नहीं उठाती।
4. जमात-ए-इस्लाम की भूमिका
बांग्लादेश की सबसे बड़ी इस्लामिक पार्टी जमात-ए-इस्लाम के समर्थकों की हिंदुओं के खिलाफ हमले में प्रमुख भूमिका रही है। कुछ वर्षों पहले पाकिस्तान के साथ 1971 की जंग के दौरान किए गए युद्ध अपराध के लिए इस दल के सदस्यों को जेल भेजने के बाद से ये दल राजनीतिक रूप से बहुत सक्रिय नहीं है।
5. हिंदुओं की आबादी घटाना
डायचे वैली की रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश हिंदू बौद्धिस्ट क्रिस्चियन यूनिटी काउंसिल (BHBCUC) का आरोप है कि अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हमले के पीछे उन्हें अपना घर छोड़ने को विवश करना है, ताकि बांग्लादेश में हिंदुओं की संख्या और कम हो सके।
हिंदुओं पर हमले के लिए भारत को क्यों जिम्मेदार ठहरा रहा बांग्लादेश?
पिछले साल अक्टूबर में जब बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ दंगा भड़का था तो प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत में सांप्रदायिकता बढ़ने का आरोप लगाते हुए कहा कि भारत में अल्पसंख्यकों (मुस्लिमों) के खिलाफ अत्याचार का असर बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले की वजह है। भारत को नसीहत देते हुए शेख हसीना ने कहा कि वहां ऐसी कोई घटना नहीं होनी चाहिए, जिसका असर बांग्लादेश पर पड़े और यहां हिंदुओं को तकलीफ झेलनी पड़े।
कुछ जानकारों का मानना है कि भारत में हिंदुत्व विचारधारा के उदय ने बांग्लादेश में कुछ लोगों के बीच एक सुपर नेशनल मुस्लिम पहचान की भावना को बढ़ाया और मजबूत किया है। कुछ एक्सपर्ट्स, इसके लिए 2019 में मोदी सरकार द्वारा भारत में लाए गए नागरिकता संशोधन एक्ट को भी वजह मानते हैं। इस एक्ट में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के प्रताड़ित हिंदुओं और गैर-मुस्लिमों के भारत में प्रवेश पर उन्हें नागरिकता देने का प्रावधान है।
मार्च 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बांग्लादेश दौरे का कट्टरपंथियों ने खूब विरोध किया था और उस दौरान हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों में 12 लोगों की मौत हो गई थी।
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