Shukdev Katha: 12 वर्ष तक गर्भ में रहे थे भागवताचार्य शुकदेव, ये है उनके जन्म की कथा – News18 हिंदी

 शुकदेव की जन्म की कथा,image-canva
Shukdev Katha: हिंदू धर्म में श्रीमद्भागवत पढऩे व सुनने का विशेष महत्व है. पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रृंगी ऋषि ने जब राजा परीक्षित को सात दिन में मृत्यु का श्राप दिया, तब शुकदेव मुनि ने मुक्ति के लिए उन्हें ये पुराण सुनाया था. पिता ऋषि वेदव्यास से ज्ञान पाकर देवताओं को महाभारत की कथा भी मुनि शुकदेव ने ही सुनाई थी. बहुत कम लोग ही ये जानते हैं कि मुनि शुकदेव एक शुक यानि तोता थे, जो भगवान शंकर के डर से 12 वर्ष तक मां के गर्भ में रहे थे. शुकदेव का संबंध राधा से भी रहा है. 
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मुनि शुकदेव की कथा
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार, मुनि शुकदेव भगवान वेदव्यास के पुत्र थे. इनके जन्म के संबंध में कई कथाएं मिली हैं. कहीं इन्हें व्यास की पत्नी वाटिका तो कहीं पिता वेदव्यास के तप से मिला भगवान शंकर का वरदान कहा गया है. एक कथा के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण व राधाजी के अवतार के समय ये राधा के साथ खेलने वाले शुक थे.
एक समय जब भगवान शिव अमर कथाएं सुना रहे थे तो पार्वती जी तो सो गईं, पर शुक उन्हें सुनकर हां करता रहा. जब भगवान शंकर ने देखा तो वे उसे पकड़ने भागे. ये देख शुक व्यासजी के आश्रम में पहुंचकर सूक्ष्म रूप से उनकी पत्नी के मुंह में समा गया. मान्यता है कि यही शुक फिर व्यासजी के अयोनिज पुत्र के रुप में प्रकट हुए.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गर्भ में ही इन्हे वेद, उपनिषद, दर्शन, पुराण आदि का ज्ञान हो गया, पर माया के डर से ये 12 वर्ष तक गर्भ में ही छिपे रहे. बाद में भगवान श्रीकृष्ण से माया के प्रभाव से मुक्त रहने का आश्वासन मिलने पर ही ये बाहर निकले. 

श्रीकृष्ण लीला के एक श्लोक से हुए आकर्षित
पौराणिक कथाओं के अनुसार मुनि शुकदेव जन्मते ही श्रीकृष्ण व  माता- पिता को प्रणाम कर तपस्या के लिये जंगल में चले गए. व्यासजी की इच्छा थी की शुकदेव श्रीमद्भागवद् का अध्ययन करें, पर वे उन्हें मिले ही नहीं. इसके बाद श्रीव्यासजी ने भागवत का एक श्लोक बनाकर अपने शिष्यों को रटा दिया. वे उसे गाते हुए जंगल में लकडिय़ां लेने जाते थे.
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तभी एक समय शुकदेवजी ने भी उस श्लोक को सुन लिया. इसके बाद श्रीकृष्णलीला के आकर्षण से बंधकर वे फिर से अपने पिता श्रीव्यासजी के पास लौट आये. श्रीमद्भागवत महापुराण के अठारह हजार श्लोकों का विधिवत अध्ययन करने के बाद उन्होंने  राजा परीक्षित को इसे सात दिन में सुनाया, जिसे सुन राजा परीक्षित भगवान के परमधाम पहुंचे. तब से ही साप्ताहिक भागवत सुनने का प्रचलन शुरू हुआ.
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