दिसम्बर 20, 2021 Latest, आपकी नज़र, स्तंभ, हस्तक्षेप
औरत की आज़ादी और सुरक्षा देश की सबसे बड़ी समस्या है। हम यह मान बैठे हैं कि संविधान में औरत को हक़ दे दिए गए हैं और क़ानून बना दिया गया तो औरत अब आज़ादी से घूम- फिर सकती है।
औरत की मौजूदा समाज में धर्मनिरपेक्ष और साम्प्रदायिक दोनों ही क़िस्म के लोगों और विचारधाराओं से जंग है। जो यह मान बैठे हैं कि धर्मनिरपेक्ष होना स्त्री के पक्ष में खड़े होना है। यह एकदम ग़लत धारणा है। स्त्री की मुक्ति के लिए दोनों ओर से ख़तरा है।
स्त्री को आज़ादी दिलाने के लिए स्त्री के नज़रिए से देखने की ज़रुरत है। धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता दोनों ही दृष्टियाँ औरत को पुरुष के मातहत रखती हैं। औरत की मुक्ति की यह सबसे बड़ी चुनौती है कि उसे हर क़िस्म के वर्चस्व से मुक्त रखा जाय।
औरत की आज़ादी का पैमाना पुरुष या समाज नहीं, औरत होगी। समाज की जितनी भी परिभाषाएँ हैं वे पुंसवादी हैं और पुंसवादी पैमानों से औरत की आज़ादी का मूल्याँकन संभव नहीं है। हमारे समाज में हर स्तर पर समानता का मानक पुंसकेन्द्रित है और यह पैमाना बहुत धीमी गति से बदल रहा है।
कांग्रेस, भाजपा, बसपा, अन्ना द्रमुक या टीएमसी आदि दलों के सर्वोच्च पदों पर औरत के बैठे होने से ये दल पुंसवाद से मुक्त नहीं हो गए। पद पर बिठाने मात्र से औरत को समानता नहीं मिलती, पद तो संकेत मात्र है, समस्या पद या प्रतिशत की भी नहीं है।
औरतों में बड़ा हिस्सा है जो दुनिया को पुंसवादी नज़रिए से देखता है और दैनन्दिन जीवन में पुंसवादी उत्पीड़न का स्त्री के ख़िलाफ़ मोर्चा खोले हुए है।
औरत पर विचार करते समय औरतों में व्याप्त वैविध्य को भी ध्यान में रखना होगा। परंपरागत नज़रिए से लेकर स्त्रीवादी नज़रिए तक की औरतें हमारे समाज में हैं। हमें सभी क़िस्म के स्त्री दृष्टिकोण के प्रति सहिष्णु भाव पैदा करना होगा।
औरतें सुख और आज़ादी से रहें इसके लिए ज़रुरी है कि हम अनपढ़ से लेकर शिक्षित तक सभी रंगत और सभी जातियों की औरतों के प्रति समानता और सम्मान के नज़रिए से पेश आएँ।
औरतों में दो क़िस्म की चुनौतियाँ हैं, पहली चुनौती स्त्री-पुरुष भेद की है और दूसरी चुनौती स्त्रियों में व्याप्त सामाजिक-क्षेत्रीय भेद की है। औरतें पहले औरतों से सामाजिक भेद त्यागकर प्रेम करना सीखें। मसलन ब्राह्मण औरत में निचली जाति की औरत के प्रति भेददृष्टि होती है। यह भेददृष्टि उसमें समानता और सम्मान का सामान्य रवैय्या विकसित नहीं होने देती। यहाँ तक धर्मनिरपेक्षता या हिन्दुत्व भी उसे इसमें मुक्ति मार्ग नहीं दिखाते।
स्त्री जितनी घर के बाहर निकलेगी , समाजीकरण की प्रक्रिया में सक्रिय होगी उसकी भेददृष्टि कम होती चली जाएगी। इसके लिए उसे स्त्री मुक्ति की स्त्रीवादी विचारधाराओं और परंपराओं से सीखना होगा।
प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी
हमें गूगल न्यूज पर फॉलो करें. ट्विटर पर फॉलो करें. वाट्सएप पर संदेश पाएं. हस्तक्षेप की आर्थिक मदद करें
Enter your email address:
Delivered by FeedBurner
Tags औरत स्त्री
महाराष्ट्र में ऑपरेशन लोटस पर संपादकीय टिप्पणी (Editorial Comment in Hindi on Operation Lotus in …
This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.
Donate to Hastakshep
नोट – हम किसी भी राजनीतिक दल या समूह से संबद्ध नहीं हैं। हमारा कोई कॉरपोरेट, राजनीतिक दल, एनजीओ, कोई जिंदाबाद-मुर्दाबाद ट्रस्ट या बौद्धिक समूह स्पाँसर नहीं है, लेकिन हम निष्पक्ष या तटस्थ नहीं हैं। हम जनता के पैरोकार हैं। हम अपनी विचारधारा पर किसी भी प्रकार के दबाव को स्वीकार नहीं करते हैं। इसलिए, यदि आप हमारी आर्थिक मदद करते हैं, तो हम उसके बदले में किसी भी तरह के दबाव को स्वीकार नहीं करेंगे।
OR
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
Subscription received!
Please check your email to confirm your newsletter subscription.
Author Profile

Latest entries
लाइफस्टाइल2023.02.08इम्युनिटी, पेट की समस्या… इन बीमारियों का 'काट' हैं सप्लीमेंट्स, जानें इन्हें – ABP न्यूज़
धर्म2023.02.08जगदानंद सिंह की राम मंदिर वाली टिप्पणी पर BJP का पलटवार हिंदू आस्था का अपमान करने का आरोप लगाया.. – दैनिक जागरण (Dainik Jagran)
विश्व2023.02.08एक क्लिक में पढ़ें 10 नवंबर, गुरुवार की अहम खबरें – Aaj Tak
राशीफल2023.02.08Horoscope Today 7 September 2022 Aaj Ka Rashifal आज का राशिफल 7 सितंबर 2022 : शनि और चंद्रमा का संयोग, मेष और मिथुन सहित इन राशियों को मिलेगा फायदा – NBT नवभारत टाइम्स (Navbharat Times)