हाल ही में देश के शीर्ष नेता और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के देहावसान के बाद उनके पुत्र अखिलेश ने उनकी अस्थियों को हरिद्वार में गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया. आखिर क्यों हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार के बाद अस्थियों को संचित करके उसे गंगा में प्रवाहित या विसर्जित किया जाता है. क्या है आखिर इसके पीछे की वजह
हिंदू धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसके बाद उसका अंतिम संस्कार किया जाता है. इस अंतिम संस्कार में मृत शरीर को अग्नि दी जाती है. इस प्रक्रिया में देह के सभी अंग अग्नि की भेंट हो जाते हैं. अवशेष के तौर पर हड्डियों के अवशेष ही बचते हैं. ये मिली जुली राख के तौर पर होते हैं. इन्हें ही अस्थियां कहा जाता है.
क्यों अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करते हैं
अंतिम संस्कार में चिता के अग्नि कर्म के बाद इन अस्थियों को बटोरकर किसी मिट्टी के पात्र में इकट्ठा कर लिया जाता है. आमतौर पर अगर अंतिम संस्कार गंगा के तट पर होता है तो अस्थियों को अंतिम संस्कार के बाद ही नदी के जल में प्रवाहित कर देते हैं लेकिन अगर अंतिम संस्कार वहां नहीं होता तो इन अस्थियों को घर पर लाकर अस्थि कलश को घर के बाहर किसी पेड़ पर लटका दिया जाता है.
इसके बाद इसे 10 दिनों के भीतर ही अस्थियों का विसर्जन गंगा नदी या किसी पवित्र नदी में कर दिया जाता है. वैसे प्राचीन ग्रंथों में इसे गंगा नदी में करना सबसे बेहतर माना गया. अब सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि अस्थि को गंगा नदी में क्यों विसर्जित किया जाता है.
धार्मिक तौर पर क्या मान्यता
विशुद्ध तौर पर ये धर्म, रीतिरिवाज और हिंदू धर्म में बताए गए तौरतरीकों का विषय होता है. इसके बारे गरुण पुराण में एक कथा का जिक्र है.
गरुड़ पुराण के अध्याय 10 में वर्णित कथा के अनुसार पक्षीराज गरुड़ भगवान विष्णु से पूछते हैं कि हे स्वामी जब भी किसी की मृत्यु हो जाती है तो मृतक के परिजन उसका दाह संस्कार कर देते हैं परंतु मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि वह मृतक की अस्थियो को संचित क्यों करते हैं. और इसे गंगा नदी या जल में प्रवाहित क्यों किया जाता है.
गरुड़ की बातें सुनकर भगवान विष्णु कहते हैं जब किसी मनुष्य की मृत्यु हो जाती है. उसका दाह संस्कार कर दिया जाता है तो उसके परिवार वालों को चाहिए कि दाह संस्कार के चौथे दिन अस्थि संचन के लिए श्मशान भूमि में स्नान करके पवित्र हो जाएं. फिर चिता की राख से मृतक की अस्थियों को चुन ले. इन्हें गंगा जल में प्रवाहित होने के पीछे ये माना जाता है कि मृत्यु के 10 दिनों के भीतर अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने पर मृतक की आत्मा शांत हो जाती है. गंगा उसके सारे पापों को नष्ट कर देती है.
गंगा नदी के धरती पर आने की पौराणिक कथा
गौरतलब है कि हमारी पौराणिक कहानियां भी इस बारे में कहते हैं कि महाराज भगीरथ इसी वजह से अपने पूर्वजों का उद्धार करने के लिए गंगा नदी को भूलो पर लेकर आए थे. जिससे उनके सभी पुरखों की आत्मा को शांति मिली थी.
अस्थि विसर्जन का वैज्ञानिक आधार
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार हड्डियों में फास्फोरस और कैल्शियम होता है, जो भूमि को उपजाऊ बनाने में मददगार है. जब हम गंगा नदी में या किसी और नदी में जो दूर तक बहती जाती है उसमें अस्थियो (हड्डियां) को विसर्जित करते है तो ये पानी में नदी के आसपास की जमीनों को उपजाऊ बनाता है. साथ जल में रहने वाले जीवों के लिए पौष्टिक आहार भी है.
रात में क्यों नहीं किया जाता अंतिम संस्कार
वैसे तो अब रात में अंतिम संस्कार होने लगे हैं लेकिन लंबे समय तक ये माना जाता रहा है कि ये रात में नहीं होना चाहिए. दरअसल हिंदू धर्म के 16 संस्कारों आखिरी संस्कार दाह संस्कार ही होता है. हिंदू ग्रंथ और मान्यता में चल रहे रीति रिवाज करते हैं कि सूर्यास्त के बाद कभी अंतिम संस्कार नहीं किया जाना चाहिए. इसके लिए सुबह तक इंतजार करना चाहिए. क्योंकि रात में दाह संस्कार आत्मा की शांति के लिए उचित नहीं होता.
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Tags: Death, Ganga river, Hindu, Hindu funeral
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