कब मिली जैन धर्म को पहचान? जानें कितने हैं तीर्थंकर और क्या है इसका इतिहास – News18 हिंदी

जैन धर्म साहित्यिक रूप से बहुत धनी है.
Jain Dharma History: जैन शब्द ‘जिन’ शब्द से बना है. जिन शब्द का अर्थ है ‘जीतने वाला’, जिसने स्वयं को जीत लिया, उसे जितेंद्रिय कहते हैं. जैन धर्म भारत के प्राचीन धर्मों में से एक माना गया है. जैन ग्रंथों के अनुसार, यह धर्म अनंत काल से माना जाता रहा है. जैन धर्म की परंपरा का निर्वाह तीर्थंकरों के माध्यम से होता हुआ आज इस स्वरूप में पहुंचा है. जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए. जिनमें से पहले थे ऋषि देव तथा अंतिम महावीर स्वामी रहे हैं. जैन धर्म अहिंसा के सिद्धांत को बहुत ही शक्ति से मानता है. जैन धर्म के दो प्रमुख संप्रदाय हैं- दिगंबर और श्वेतांबर. आइए जैन धर्म के ग्रंथ के अनुसार जानते हैं कैसे जैन धर्म का उदय हुआ और क्या है इसका इतिहास?
जैन धर्म में 24 तीर्थंकर
श्री ऋषभनाथ- बैल, श्री अजितनाथ- हाथी, श्री संभवनाथ- अश्व (घोड़ा), श्री अभिनंदननाथ- बंदर, श्री सुमतिनाथ- चकवा, श्री पद्मप्रभ- कमल, श्री सुपार्श्वनाथ- साथिया (स्वस्तिक), श्री चन्द्रप्रभ- चन्द्रमा, श्री पुष्पदंत- मगर, श्री शीतलनाथ- कल्पवृक्ष, श्री श्रेयांसनाथ- गैंडा, श्री वासुपूज्य- भैंसा, श्री विमलनाथ- शूकर, श्री अनंतनाथ- सेही, श्री धर्मनाथ- वज्रदंड, श्री शांतिनाथ- मृग (हिरण), श्री कुंथुनाथ- बकरा, श्री अरहनाथ- मछली, श्री मल्लिनाथ- कलश, श्री मुनिस्रुव्रतनाथ- कच्छप (कछुआ), श्री नमिनाथ- नीलकमल, श्री नेमिनाथ- शंख, श्री पार्श्वनाथ- सर्प, श्री महावीर- सिंह.

इन सबमें महावीर स्वामी का जैन धर्म में महत्वपूर्ण योगदान रहा है क्योंकि उन्हीं के काल में जैन धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ. इनका जन्म कुण्डलग्राम, वैशाली में हुआ था. पिता सिद्धार्थ तथा माता त्रिशला थीं. इनकी ऊँचाई 6 फीट बताई जाती है.
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12 साल की तपस्या
इनसे पूर्व के जैन तीर्थंकरों की ऊंचाई और पीछे जाने पर बढ़ती चली जाती है. महावीर स्वामी ने लगभग 12 साल तपस्या की, जिसके बाद इन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ. शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात वे दिगम्बर जीवन को अपनाया और निर्वस्त्र रहे. दुनिया को उन्होंने सत्य और अहिंसा की तरफ चलने को कहा. महावीर स्वामी बिहार के पावापुरी (राजगीर) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या को निर्वाण को प्राप्त हुए. पावापुरी के एक जल मंदिर के बारे में माना जाता है कि वहीं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई.
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जैन धर्म में 46 आगम ग्रंथ है
जैन धर्म साहित्यिक रूप से बहुत धनी था. जैन धर्म ग्रंथ के सबसे पुराने आगम ग्रंथ 46 माने जाते हैं. ये ग्रंथ संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में लिखे गए थे. केवल ज्ञान, मनपर्यव ज्ञानी, अवधि ज्ञानी, चतुर्दशपूर्व के धारक तथा दशपूर्व के धारक मुनियों को आगम कहा जाता था तथा इनके द्वारा दिए गए उपदेशों को भी आगम नाम से संकलित किया गया. दिगम्बर जैनों द्वारा समस्त 45 आगम ग्रंथों को चार भाग में विभाजित किया गया है, जो प्रथमानुयोग, करनानुयोग, चरणानुयोग, द्रव्यानुयोग हैं.
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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Tags: Dharma Aastha, Religion

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