सद्-विचार से मनुष्य अपने अविनाशी-स्वरूप को सहज ही उपलब्ध हो सकता है, जबकि जगत के अन्य पदार्थ नश्वर-मरणधर्मा हैं। अत: सद्-विचार संग्रहण-अनुशीलन करें। आध्यात्मिक विचार परिपक्व होते ही जीवन में आनन्द-माधुर्य, ऐश्वर्य-सौन्दर्य आदि दिव्यताएं स्वत: ही स्फुरित होने लगती हैं।
Published: April 25, 2022 06:31:13 pm
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