कपूरथला(बॉबी शर्मा)बच्चों में शिक्षा के साथ ही संस्कारों का भी बीजारोपण होना चाहिए।संस्कारों के बिना शिक्षा अधूरी है।आज के इस भौतिक युग में संस्कार शाला का संचालन होना अत्यंत आवश्यक है।गुरुवार को भाजपा नेता प्रदीप ठाकुर ने यह बात कही।ठाकुर ने कहा कि आज के इस बदलते परिवेश में समय निकालकर बच्चों को संस्कारवान बनाना यज्ञ करने के समान है।यह हमारे लिए गौरव की बात होगी एक सभी सामाजिक व धार्मिक संस्थाए धार्मिक कार्यो के साथ साथ बच्चो में संस्कारो का बीजारोपण करे।उन्होंने कहा कि आदर्श समाज की स्थापना संस्कार से ही शुरू हो सकती है और संस्कार जन्म से ही डाला जा सकता है।ठाकुर ने कहा कि शिक्षा से पहले संस्कार की आवश्यकता है।बच्चों को घरों से ही संस्कार देना शुरू कीजिए।बच्चे के बड़े होने पर संस्कार देना मुश्किल हो जाता है इसलिए बाल्यावस्था से ही संस्कार का बीज बोना अति आवश्यक है।संस्कारशाला को नई पीढ़ी नई चेतना प्रदान करने की दिशा बताया।उन्होंने कहा कि संस्कारों और संस्कारों की सुन्दरता के महत्व की पहली कड़ी घर से शुरू होती है।घर से ही बच्चों के संस्कार की शुरूआत होती है।अभिभावकों को इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए।इसके बाद दूसरी जिम्मेदारी स्कूल के शिक्षकों एवं शिक्षिकाओं की होती है,जो बच्चों के अच्छे संस्कारों का बोध कराते हैं।सिर्फ संस्कार ही नहीं,बल्कि इसके बारे में जानकारी भी होनी चाहिए।हमारे संस्कार अच्छे हैं और हमें अच्छे या खराब की जानकारी नहीं है,तो इसका महत्व नहीं रहता।लिहाजा,संस्कारों का ज्ञान और उनकी सुन्दरता ही हमें उन्नति के लिए प्रेरित करती है।यदि संस्कारों की एक कड़ी शुरू हो जाती है तो फिर इसमें निरंतरता बनी रहती है और यही अच्छा समाज बनाने सहायक होती है।ठाकुर ने कहा कि प्रबल संस्कार से शिक्षा पल्लवित होगी।वर्तमान समय में यह महसूस किया जा रहा है कि जैसे-जैसे शिक्षित नागरिकों का प्रतिशत बढ़ रहा है,वैसे-वैसे समाज में जीवन मूल्यों में गिरावट आ रही है।हमें मूल्यों के सौंदर्य का बोध होना चाहिए।विद्यार्थी जो देश का भविष्य हैं वे तनाव,अवसाद,बाहय आकर्षण और अनुशासनहीनता के शिकार हैं।इसका कारण पाश्चात्य संस्कृति,विद्यालय या समाज ही नहीं,बल्कि संस्कारों के प्रति हमारी उदासीनता है।परिवार बालक की प्रथम पाठशाला है तो माता-पिता प्रथम शिक्षक।विद्यालय में हम देख रहे हैं कि जो माता-पिता अपने बच्चों में अच्छे संस्कार आरोपित करते हैं वे वाह्य वातावरण से प्रभावित हुए बिना शिक्षक द्वारा दी गई विद्या को फलीभूत करते हैं।अत:परिवार में प्रत्येक सदस्य का दायित्व है कि बच्चों में भौतिक संसाधनों के स्थान पर संस्कारों की सौगात दें।
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