कोरोना के बीच तेजी से पैर पसार रही ‘मायोपिया’ बीमारी, इन देशों में 80% तक युवा और बच्चों… – TV9 Bharatvarsh

| Edited By: मोहन कुमार
Jun 11, 2022 | 1:06 PM
दुनिया के कई विकसित और सम्पन्न देशों में बेशक संक्रामक बीमारियां ना के बराबर हैं, लेकिन यहां कैलोरी से भरपूर खाने और आरामदायक जिंदगी की वजह से डायबिटीज, मोटापा और दिल की बीमारियों को जन्म दिया है. इसकी वजह से यहां रह रहे बच्चों और किशोरों की दूर की नजर कमजोर हो गई है. नजर कम पड़ने की समस्या को मायोपिया (Myopia) कहा जाता है. एक बार जब मायोपिया की बीमारी घेर ले तो दूर की चीजें देखने में बड़ी मुश्किल हो जाती है. एक रिपोर्ट बताती है कि एशिया (Asia) और यूरोप के कई देशों में स्कूल में पढ़ रहे बच्चों की 80 प्रतिशत दूर की नजर कमजोर पड़ गई है.
इसमें कहा गया है कि 1960 के दशक में आर्थिक समृद्धि की शुरुआत से पहले पूर्व एशिया में मायोपिया न के बराबर था, लेकिन अब यह बुरी तरह से फैल गया है. मामले से जुड़े जानकार बताते हैं कि बच्चों के कम रोशनी वाली कक्षाओं में अधिक समय गुजारने की वजह से ऐसी स्थिति बन गई है. रिपोर्ट बताती है कि एशियाई देश दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में हर 10 में से 9 युवा इस बीमारी से ग्रस्त हैं. इसके अलावा पड़ोसी देश चीन में भी यह बीमारी तेजी से फैल रही है.
आंकड़े बताते हैं कि गुआंगझाउ प्रांत और आंतरिक मंगोलिया में लगभग 80 प्रतिशत युवा मायोपिया के शिकार हैं. रिपोर्ट ने यह भी कहा है कि यूरोप में इसकी दर एशिया के अपेक्षाकृत थोड़ी कम और यह आंकड़ा 20 प्रतिशत से 40 प्रतिशत के बीच है. अमेरिका में मायोपिया के शिकार 17 से 19 साल के युवा 59 प्रतिशत तक हैं. इस मामले पर ऑल इंडिया ऑप्थैल्मोलॉजी सोसायटी के अध्यक्ष डॉ. ललित वर्मा ने अहम जानकारी दी है. उन्होंने कहा है कि मायोपिया सबसे ज्यादा फैलने वाला और बहुत सामान्य आई डिसऑर्डर है.
उनका कहना है कि इस बीमारी से दुनिया की 20 फीसदी आबादी प्रभावित है, जिसमें 45 फीसदी वयस्क और 25 फीसदी बच्चे शामिल हैं. उनके मुताबिक, इस बीमारी पर ध्यान न देना और इलाज न कराना ही अंधेपन का सबसे मुख्य कारण बनता है. उन्होंने बताया कि बताया कि कोविड काल में और डिजिटल प्लेटफॉर्म यानी स्मार्ट फोन, लैपटॉप और कम्पयूटर पर काम करने की वजह से छोटे बच्चे और स्कूली बच्चे विभिन्न प्रकार के आई डिसऑर्डर का शिकार हुए हैं.
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