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12-13 साल की उम्र में शुरू होने के साथ मीनोपॉज तक पीरियड्स सिर्फ एक मंथली साइकल नहीं, बल्कि एक सतत चिंता का विषय भी बना रहता है. कभी पीरियड समय से पहले आ जाता है, कभी देर से आता है और कभी-कभी तो ड्यू डेट से काफी ज्यादा ही आगे बढ़ जाता है और फिक्र बढ़ा देता है. कभी क्रैम्प्स होते हैं, कभी हैवी ब्लीडिंग तो कभी कम ब्लीडिंग. कई बार ब्लीडिंग तय दिनों से ज्यादा चलती रहती है तो कभी उससे पहले ही खत्म हो जाती है.
वजह जो भी हो, पीरियड्स हमेशा किसी-न-किसी तरह की परेशानी का कारण बना ही रहता है. और कुछ नहीं तो हर महीने पीरियड आना भी उम्र भर एक तरह की परेशानी ही लगती है. लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सभी परेशानियां सिर्फ बायलॉजिकल हैं या इनका कोई संबंध हमारी रोजमर्रा की लाइफस्टाइल और जीने के तरीके से भी है. मैरिलिन ग्लेनविले की किताब ‘अंडरस्टैंडिंग इररेगुलर पीरियड्स’ उन कारणों को समझने में मदद करती है, जिसका असर हमारे पीरियड्स पर पड़ता है.
मैरिलिन कहती हैं कि कुछ क्रॉनिक मेडिकल कंडीशंस के अलावा पीरियड्स से जुड़ी बहुत सी छोटी-मोटी समस्याओं की वजह हमारी अनहेल्दी लाइफस्टाइल यानी खराब आदतें ही होती हैं. यहां हम आपको बता रहे हैं कि आपकी किन आदतों और गलतियों का असर आपके पीरियड साइकल पर पड़ रहा है.
कई साल पहले हॉलीवुड एक्ट्रेस रीस विदर्सपून ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था, “जीवन में एक दौर ऐसा भी था, जब मैं बहुत तनाव और अवसाद से गुजर रही थी. पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा था. उसमें कोढ़ में खाज ये हुई कि मेरे पीरियड्स ही बंद हो गए. मैं पहले से काफी परेशान थी. पीरियड्स बंद होने ने मेरी परेशानी और बढ़ा दी.”
मैरिलिन ग्लेनविले एक सुझाव देती हैं. वो कहती हैं कि अपने पीरियड कैलेंडर में अपनी मानसिक-भावनात्मक स्थिति के बारे में भी लिखिए.
अगर किसी महीने आप बहुत तनाव में रहीं, परेशान रहीं तो वो भी लिखिए और देखिए कि उस महीने आपके पीरियड पर इसका क्या असर पड़ा.
मैरिलिन कहती हैं कि यूं तो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे खराब असर डालने वाली चीज स्ट्रेस यानी तनाव ही है, लेकिन महिलाओं के पीरियड साइकल पर इसका बहुत नकारात्मक असर पड़ता है. स्ट्रेस की वजह से आपके पीरियड रुक सकते हैं, देर से आ सकते हैं या समय से पहले भी आ सकते हैं.
स्ट्रेस का अर्थ है शरीर में स्ट्रेस हॉर्मोन यानी कॉर्टिसॉल की अधिकता. डॉ. गाबोर माते कहते हैं कि कॉर्टिसॉल की अधिकता शरीर के बाकी हॉर्मोन्स, जैसे इंसुलिन, टेस्टेस्टेरॉन, रेजेस्ट्रॉन आदि को प्रभावित करती है. महिलाओं के साथ इसका सबसे ज्यादा असर उनके पीरियड संबंधी हॉर्मोन्स पर पड़ता है. इसलिए जहां तक हो सकते तनावमुक्त रहने की कोशिश करनी चाहिए.
यूं तो सिगरेट और शराब किसी के भी शरीर के लिए हानिकारक है, लेकिन महिलाओं के लिए ज्यादा हानिकारक है क्योंकि इसका सीधा असर उनके रीप्रोडक्टिव ऑर्गन्स और पीरियड साइकल पर पड़ता है. स्मोकिंग और एल्कोहल नींद को प्रभावित करता है. नींद का साइकल बिगड़ने का असर शरीर के बाकी सभी अंगों और उनकी फंक्शनिंग पर पड़ता है, लेकिन महिलाओं के केस में सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं उनके रीप्रोडक्टिव हॉर्मोन. इसलिए जहां तक हो सके, स्मोकिंग और एल्कोहल से परहेज रखना चाहिए.
कहते हैं, स्वस्थ रहने के लिए दो चीजें जरूरी हैं- हेल्दी खाना और दौड़ लगाना. कहने का आशय है, किसी भी तरह का शारीरिक व्यायाम. मेडिकल साइंस स्वास्थ्य के लिए वर्कआउट या एक्सरसाइज को अनिवार्य मानता है. हमने एक्सरसाइज के फायदे तो बहुत सुने हैं, लेकिन नुकसान शायद ही सुना हो.
मैरिलिन कहती हैं कि जरूरत से ज्यादा एक्सरसाइज भी पीरियड साइकिल बिगाड़ सकती है. जितनी जरूरत शरीर को मेहनत करने की है, उतनी ही जरूरत आराम करने और रिकवर करने की भी है. अगर हफ्ते में पांच दिन से ज्यादा और रोज दो घंटे से ज्यादा एक्सरसाइज कर रहे हैं तो इसका अर्थ है कि आपके शरीर को रिकवर होने का टाइम नहीं मिल रहा. पुरुषों के केस में इसका बुरा असर उनकी हार्ट हेल्थ पर पड़ता है और महिलाओं के केस में अतिरिक्त एक्सरसाइज सीधे उनके रीप्रोडक्टिव हॉर्मोन्स को प्रभावित करती है.
यदि आप मैराथन की तैयारी कर रहे हैं या कोई हाई इन्टेन्सिटी एक्सरसाइज कर रहे हैं तो एक बात का ध्यान रखें कि बीच-बीच में ब्रेक जरूर लें. शरीर को रिकवरी टाइम मिलना जरूरी है.
सुनने में ये बड़ा जेनेरिक सी बात लग सकती है क्योंकि डाइट का असर तो कुल मिलाकर हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य पर ही पड़ता है. लेकिन कुछ खास तरह की चीजें जैसे जंक फूड, सोडा, एनर्जी ड्रिंक्स, रिफाइंड कार्ब, रिफाइंड डेयरी का असर पीरियड साइकल पर भी पड़ता है. मैरिलिन कहती हैं कि अपने भोजन का चुनाव करते हुए एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि आप ज्यादातर ऐसी चीजें खाएं, जो आपके आसपास प्रकृति में उगती हों और कम से कम रिफाइंड यानि प्रॉसेस्ड हों. जैसे चीज खाना सेहत के लिए अच्छा है, लेकिन प्रॉसेस्ड चीज बहुत नुकसानदायक है.
यदि आपकी नींद का समय और घंटे अनियमित हैं तो इसका असर पीरियड साइकल पर पड़ेगा. जैसेकि यदि आपका काम ऐसा है, जिसमें आपको नाइट ड्यूटी करनी पड़ती है तो इसका अर्थ है कि आपका स्लीप साइकल बदलता रहता है. कभी आप रात में सोती हैं तो कभी दिन में. स्लीप साइकल बिगड़ने का अर्थ है मेलेटॉनिन हॉर्मोन की अधिकता और यदि यह हॉर्मोन जरूरत से ज्यादा हो तो पीरियड्स साइकल को बुरा असर डालता है.
Edited by Manisha Pandey
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