दस्तावेजों में खुलते ज्ञान के शिखर | – News in Hindi – हिंदी न्यूज़, समाचार, लेटेस्ट-ब्रेकिंग न्यूज़ इन हिंदी – News18 हिंदी

भारत की नई शिक्षा नीति का खाका जैसे ही सामने आया, उस पर वाद, विवाद और संवाद के सिलसिले ने जोर पकड़ा. अलग-अलग शिविरों में चल रहे मंथन और मत-मतांतरों ने आधुनिक शिक्षा के ढांचे पर सवाल करते हुए नए पहलू जोड़ने का मशविरा दिया है तो दूसरी ओर भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा के आदर्शों को पुनः अपनाने के लिए स्वर मुखर होने लगे हैं. परंपरा के पक्ष में खड़े बहुसंख्यक लोगों का मानना है कि औपनिवेशिक संस्कृति के मोह में हमने अपने जीवन और पुरूषार्थ की दिशाओं को उपभोक्तावाद की ओर मोड़ दिया. ज्ञान, साधना और कौशल से संपन्न हमारी प्रतिभा ने सदियों पहले जो जीवन सूत्र हमें दिए उनकी अनदेखी हमने की. आधुनिकता के आग्रह में पश्चिम से आए नए ज्ञान-विज्ञान को हमने प्रश्रय देना शुरू कर दिया जबकि उनसे शताब्दियों पहले भारत की भूमि पर शोध, अन्वेषण और अविष्कार के चमत्कार सजीव होते रहे हैं.
ये सच है कि केवल भारत ही एक ऐसा देश है जिसका अतीत कभी मरा नहीं. वह वर्तमान के रथ पर चढ़कर लगातार भविष्य की तरफ अग्रसर रहा. भारत का अतीत कल भी जीवित था वह आज भी जीवित है और आगे भी रहेगा. विक्रमकालीन ग्रंथों के अध्ययन से हम अनुमान लगा सकते हैं उस मानसिकता का जिसने हिंदू धर्म को नव जीवन प्रदान किया. तब एक से बढ़कर एक विद्वान हुए जिन्होंने ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में खोज करके जिस साहित्य की रचना की वह आज भी प्रशंसनीय है. आज के विद्वान भी उससे सहायता प्राप्त करते हैं. विक्रमादित्य के काल में ज्ञान, विज्ञान, कला एवं साहित्य में जो पथ प्रशस्त हुआ वह अभूतपूर्व था.
इन्हीं तमाम संदर्भों को प्रामाणिकता से जांचते हुए इधर मध्यप्रदेश में विक्रमादित्य शोध पीठ ने कुछ दस्तावेजों को खंगाला. बड़ा जखीरा हाथ लगा. आश्चर्य और दुर्भाग्य कि ये बेशकीमती दस्तावेज नए समय और नई नस्ल के सामने ठीक से पहले पेश ही नहीं किए गए. इधर, म.प्र. के संस्कृति महकमे ने जब स्वराज संस्थान संचालनालय के अधीन काम करने वाली महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ की बागडोर अनुभवी संस्कृतिकर्मी और पूर्व संस्कृति संचालक श्रीराम तिवारी के हाथों सौंपी तो चेतना की नई लहर जागी. विस्मृति की धूल को पोंछने का काम शुरू हुआ. सामने था- भारत के ऋषि वैज्ञानिकों का विशाल वंश.
शोध पीठ के दस्तावेज कहते हैं कि भारत के विषय में लिखित साक्ष्य ऋग्वैदिक काल से मिलता है और ऋग्वेद इस संदर्भ में प्रथम ग्रंथ है. ऋग्वेद विश्व की प्राचीनतम पुस्तक है जो प्राचीन भारतीय आर्यों की राजनीतिक व्यवस्था के साथ ही उनके ज्ञान-विज्ञान, दर्शन, धर्म, कला एवं साहित्यिक उपलब्धियों का एकमात्र महत्वपूर्ण स्रोत है. भौतिक जगत को समझने की चेष्टा सर्वप्रथम प्राचीन आर्यों ने ही आरंभ की थी. ऋग्वेद ग्रंथ के विश्वकर्मा सूक्त में इस प्रकार के प्रश्न उठाए गए है कि सृष्टि का अधिष्ठान क्या है? इसका आरंभ कैसे हुआ? किस पदार्थ से यह जगत् बना? इसका रचयिता कौन है? इन प्रश्नों में से कुछ का उत्तर तो अभी आधुनिक भौतिकी को भी देना बाकी है. इसी प्रकार ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में भी इस बात का संकेत किया गया है कि सृष्टि के आरंभ में गहन अथाह जल था और आधुनिक विज्ञान का भी इस विषय में यही मानना है.

वैदिक काल के ऋषियों ने अनेक शास्त्रों, विज्ञानों एवं वेदांगों की नींव डाली थी. भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने अपने समय से बहुत आगे की कल्पनाओं और विचारों को साकार किया है. उन्होंने हजारों साल पहले ही प्रकृति से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किए और युक्तियाँ बतायीं. उनके इसी विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है. हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित वैज्ञानिक सूत्र बहुत ही सहज और सारगर्भित रूप में प्रस्तुत किए गए है. उस काल में जहां जन सामान्य के जीवन को बेहतर बनाने के लिए शास्त्र लिखे गए तो विज्ञान और गणित के गूढ़तम रहस्यों के जवाब देने के लिए भी शास्त्र लिखे गए. आधुनिक भारतीय जनसमाज के मन मस्तिष्क में कहीं ना कहीं यह बात मौजूद है कि बहुतायत में वैज्ञानिक आविष्कार पश्चिमी देशों की देन है उनके लिए यह जानना आवश्यक है कि पश्चिम के वैज्ञानिक तथा आविष्कारकों में भारतीय वैदिक विज्ञान की महत्ता को स्वीकार किया है.
राइट बंधु से हजारों वर्ष पूर्व महर्षि भारद्वाज ने विमान की करते हुए वैमानिकी शास्त्र रचा. पुष्पक तथा अन्य विमानों के रामायण में वर्णन कोई कोरी कल्पना नहीं है. ताजा वैज्ञानिक अनुसंधान ने भी तय किया है कि रामायण काल में विमान की प्रौद्योगिकी इतनी विकसित थी जिसे आज समझ पाना भी कठिन है. महर्षि विश्वकर्मा ने वैमानिकी विद्या सीखी और पुष्पक विमान बनाया. पुष्पक विमान की पद्धति का विस्तृत ब्यौरा महर्षि भारद्वाज लिखित पुस्तक यंत्र सर्वस्व में भी किया गया है. इस पुस्तक के 40 अध्याय में से एक अध्याय वैमानिकी शास्त्र अभी भी उपलब्ध है. इसमें 25 तरह के विमानों का विवरण है.
चित्र प्रदर्शनी से गुज़रते हुए यकायक ध्यान ठहरता है महर्षि कणाद के चित्र के सामने. कणाद एक ऐसे विलक्षण ऋषि थे जिन्होंने डाल्टन से दो हजार वर्ष पूर्व ही परमाणुवाद प्रतिष्ठित किया था. पुराणों में जल में अग्नि का वास होने का उल्लेख है. इससे जल से ऊर्जा प्राप्त होने ही का आशय नहीं बल्कि वरुण (जल) के यौगिक होने का भी संदेश मिलता है. आधुनिक भाषा में जल को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का यौगिक माना जाता है. पुराण की भाषा में जल पृथ्वी तत्व हाइड्रोजन और अग्नि तत्व ऑक्सीजन का यौगिक है. दस्तावेज़ स्पष्ट करते हैं कि न्यूटन से कई सदियों पहले भारत के खगोल विज्ञानी भास्कराचार्य ने यह प्रतिपादित कर दिया था कि पृथ्वी आकाशी पदार्थों को एक विशेष शक्ति से अपनी तरफ आकर्षित करती है. उन्होंने ही गणितीय गणना में शून्य को प्रतिपादित किया था.
पश्चिमी खगोल विज्ञानी कॉपरनिकस से हजार वर्ष पूर्व भारतीय खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने पृथ्वी की आकृति व इसकी अपनी धुरी पर घूमने की पुष्टि कर दी थी. वैदिक युग में सुश्रुत जैसे ऋषि चिकित्सक सफल शल्य चिकित्सा करते थे और आधुनिक विज्ञान ने इसको कुछ सदी पहले ही पुनः आविष्कृत किया. गणित विज्ञान, खगोल विज्ञान, धातु विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, ऊर्जा एवं पृथ्वी के जीवन सम्बन्धी ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिससे सिद्ध होता है कि सनातन वैदिक ज्ञान कितना विकसित था, जिसके मूल का उपयोग कर आज के आधुनिक विज्ञान के नाम पर पश्चिमी देशों द्वारा वैश्विक स्तर पर फैलाया गया है. हमारे ऋषि-मुनियों ने ध्यान और मोक्ष की गहरी अवस्था में ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा के रहस्य को पहचान लिया था.
प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा को निष्पक्ष ढंग से देखने पर यह ज्ञात होता कि भारत विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में अति उन्नत था. विज्ञान का विकास भारत में वैदिक काल से ही प्रारंभ हो जाता है. वेदों मे गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद व कृषि सहित अनेक विज्ञानों के विकसित होने के प्रमाण उपलब्ध है. वैदिक सभ्यता यह प्रधान रही है. विभिन्न उद्देश्यों से लौकिक एवं पारलौकिक अभ्युत्थान हेतु अनेक प्रकार के यज्ञ नियमित रूप से होते रहते थे.
इसके विशिष्ट प्रकार की ज्यामितीय आकार की वेदिकाएँ बनती थी. यज्ञ के लिए मुहूर्त निश्चित होते थे. यज्ञों की सुव्यवस्था एवं सफल संपादन के लिए गणित, ज्यामिति और ज्योतिष तथा खगोल विज्ञान विकसित हुए. गणित विशेषतः उसकी दार्शनिक अंक प्रणाली और शून्य का आविष्कार विश्व को भारत की सबसे महत्वपूर्ण देन स्वीकार की जाती है. वास्तव में वैदिक युग को ज्ञान-विज्ञान की अनेक शाखाओं को विकसित करने का श्रेय है. वैदिक ऋषियों ने अपने तपोवन में विज्ञान के विविध रूपों का अनुसंधान किया था. उन्होंने प्रकृति पदार्थ के रहस्यों को वैज्ञानिक ढंग से प्रकट किया. वैज्ञानिक अनुसंधान ही उनकी रीत-नीति आधुनिक विज्ञान की संकीर्ण सीमाओं में ना बंधते हुए भी उच्चस्तरीय, आकर्षक व सम्मोहक है. वैदिक ऋषियों के विज्ञान की विविध धाराएं आयुर्वेद भौतिक गणित रसायन वनस्पति जीव व भूगर्भ विज्ञान तथा कृषि व शिल्प आदि के रूप में प्रकट हुई है.
भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परंपरा में विक्रम संवत् पंचांग रचना का दिन माना जाता है. महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना कर पंचांग की रचना की थी. विक्रम संवत् संपूर्ण धरा की प्रकृति, खगोल सिद्धांतों और यह-नक्षत्रों से जुड़ा है. इसका उल्लेख हमारे ग्रन्थों में भी है. इसके कई वैज्ञानिक आधार और पूरे विश्व के मानने हेतु तर्क भी हैं. सम्राट विक्रमादित्य के काल में ज्ञान की यही परंपरा उत्तरोत्तर अग्रसर होती रही.
आज से 3000 वर्ष पूर्व भारतीय संस्कृति का जो रूप था आज भी वह मूलतः वैसा ही है. दुनिया में अनेक सभ्यताओं ने जन्म लिया किंतु काल ने उन्हें ध्वस्त कर दिया.
कला समीक्षक और मीडियाकर्मी. कई अखबारों, दूरदर्शन और आकाशवाणी के लिए काम किया. संगीत, नृत्य, चित्रकला, रंगकर्म पर लेखन. राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उद्घोषक की भूमिका निभाते रहे हैं.

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